विधि कार्य विभाग
1 कृत्य और संगठन
1.1 भारत सरकार (कार्य आबंटन) नियम, 1961 के अनुसार इस विभाग को निम्नलिखित कार्य- मदों का आबंटन किया गया है :--
- मामलों में मंत्रालयों/विभागों को सलाह देना, जिसके अंतर्गत संविधान और विधियों का निर्वचन, हस्तांतरण-लेखन और उच्च न्यायालयों तथा अधीनस्थ न्यायालयों में उन मामलों में, जिनमें भारत संघ एक पक्षकार है, भारत संघ की ओर से उपसंजात होने के लिए काउंसेल नियोजित करना ।
- के महान्यायवादी, भारत के महासालिसिटर और राज्यों की बाबत केन्द्रीय सरकार के अन्य विधि अधिकारी, जिनकी सेवाओं का उपयोग भारत सरकार के मंत्रालयों द्वारा समान रूप से किया जाता है ।
- सरकार की ओर से और केन्द्रीय अभिकरण स्कीम में भाग लेने वाली राज्य सरकारों की ओर से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में मामलों का संचालन करना।
- वादों में समनों की तामील, सिविल न्यायालयों की डिक्री के निष्पादन, भरण-पोषण के आदेशों के प्रवर्तन और भारत में मृत विदेशी व्यक्तियों की संपदाओं के प्रशासन के लिए विदेशों के साथ पारस्परिक प्रबंध ।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 299(1) के अधीन राष्ट्रपति की ओर से संविदाओं और संपत्ति के हस्तांतरण-पत्रों के निष्पादन के लिए अधिकारियों को प्राधिकृत करना तथा केन्द्रीय सरकार द्वारा या उसके विरूद्ध किए गए वादों में वाद - पत्रों या लिखित कथनों पर हस्ताक्षर करने और उन्हें सत्यापित करने के लिए अधिकारियों को प्राधिकृत करना ।
- विधि सेवा ।
- विधि के मामलों में विदेशों के साथ संधि और करार करना ।
- आयोग ।
- अधिनियम, 1961 (1961 का 25) सहित विधि व्यवसाय और उच्च न्यायालयों के समक्ष विधि व्यवसाय करने के हकदार व्यक्ति ।
- न्यायालय की अधिकारिता को बढ़ाना और उसे और अधिक शक्तियां प्रदान करना; उच्चतम न्यायालय के समक्ष विधि व्यवसाय करने के हकदार व्यक्ति; भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के अधीन उच्चतम न्यायालय को निर्देश ।
- अधिनियम, 1952 (1952 का 53) का प्रशासन ।
- अपीलीय अधिकरण ।
विभाग को निम्नलिखित अधिनियमों के प्रशासन का कार्य भी आबंटित किया गया है:-
- अधिवक्ता अधिनियम, 1961
- नोटरी अधिनियम, 1952
- कल्याण निधि अधिनियम, 2001;
1.2. यह विभाग आयकर अपीलीय अधिकरण और भारत के विधि आयोग का प्रशासनिक प्रभारी भी है। यह विभाग भारतीय विधि सेवा से संबंधित सभी विषयों से भी प्रशासनिक रूप से संबद्ध है । इसके अतिरिक्त, यह विधि अधिकारियों अर्थात भारत के महान्यायवादी, भारत के महासालिसिटर और भारत के अपर महासालिसिटरों की नियुक्तियों से भी संबद्ध है। विधि के क्षेत्र में अध्ययन और शोध को बढ़ावा देने और विधि व्यवसाय में सुधार करने के लिए यह विभाग इन क्षेत्रों से जुड़े संगठनों जैसे कि भारतीय विधि संस्थान और भारतीय बार काउंसिल को सहायता अनुदान देता है ।
2. संगठनात्मक ढांचा
विधि कार्य विभाग की व्यवस्था दो सोपानों में है, अर्थात् नई दिल्ली स्थित मुख्य सचिवालय और मुम्बई, कोलकाता, चेन्नै और बंगलूरु स्थित शाखा सचिवालय । कार्य की प्रकृति के हिसाब से इसके कार्यों को मोटे तौर पर दो क्षेत्रों में बांटा जा सकता है- सलाह कार्य और मुकदमा कार्य ।
मुख्य सचिवालय:
- सचिवालय में अधिकारियों की जो व्यवस्था है, उसके अन्तर्गत विधि सचिव, अपर सचिव, संयुक्त सचिव एवं विधि सलाहकार तथा विभिन्न स्तरों पर अन्य विधि सलाहकार हैं । विधिक सलाह देने और हस्तांतरण-लेखन से संबंधित कार्य को अधिकारियों के समूहों में विभाजित किया गया है । साधारणत: प्रत्येक समूह का प्रधान एक अपर सचिव या संयुक्त सचिव एवं विधि सलाहकार होता है, जिसकी सहायता के लिए विभिन्न स्तरों पर अन्य विधि सलाहकार होते हैं ।
(ii) उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों और कुछ संघ राज्यक्षेत्र प्रशासनों की ओर से मुकदमा-कार्य का संचालन केन्द्रीय अभिकरण अनुभाग करता है, जिसके प्रधान इस समय संयुक्त सचिव रैंक के एक आई.आर.पी.एस. अधिकारी हैं और उनकी सहायता के लिए तीन अपर सरकारी अधिवक्ता, दो उप सरकारी अधिवक्ता, दो सहायक सरकारी अधिवक्ता, एक अनुभाग अधिकारी और अन्य कर्मचारी हैं ।
- उच्च न्यायालय में भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों की ओर से मुकदमों के संबंध में कार्रवाई मुकदमा (उच्च न्यायालय) अनुभाग करता है, जिसके प्रधान इस समय एक उप विधि सलाहकार हैं ।
(iv) दिल्ली में अधीनस्थ न्यायालयों में मुकदमा संबंधी कार्य की देखभाल मुकदमा (निचला न्यायालय) अनुभाग करता है, जिसके प्रधान इस समय एक सहायक विधि सलाहकार हैं ।
(v) विभाग में एक विशेष प्रकोष्ठ अर्थात कार्यान्वयन प्रकोष्ठ है, जिसका कार्य विधि आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन तथा अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के प्रशासन से संबंधित कार्य करना है । यह विधि व्यवसाय से संबंधित कार्य भी देखता है। इस प्रकोष्ठ को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अधीन समन्वय का कार्य भी सौंपा गया है ।
(vi) संयुक्त सचिव एवं विधि सलाहकार का एक-एक पद क्रमश: रेलवे बोर्ड और दूर-संचार विभाग में है और इन पदों के धारक उक्त कार्यालयों में ही बैठते हैं । वर्तमान में, एक उप विधि सलाहकार रेलवे बोर्ड में कार्य कर रहे हैं । संयुक्त सचिव एवं विधि सलाहकार का एक पद लोक उद्यम विभाग के लिए भी स्वीकृत है और पदधारी उक्त विभाग में माध्यस्थम् के स्थायी तंत्र की स्कीम के अधीन मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है । एक उप विधि सलाहकार रक्षा मंत्रालय के अधीन सेना क्रय संगठन में कार्य करता है । इसके अतिरिक्त, रक्षा मंत्रालय, श्रम मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, एस0एफ0आई0ओ0, एन0टी0आर0ओे0 और केंद्रीय जांच ब्यूरो में विभिन्न स्तरों के कुछ पद, जैसे कि उप विधि सलाहकार और सहायक विधि सलाहकार भी हैं ।
भारतीय विधि सेवा का सृजन
समाज के विकास के साथ-साथ विधि व्यवसाय में भी भारी बदलाव हुआ है । समाज की कानूनी जरूरतों को पूरा करने के लिए तथा न्याय की समुचित व्यवस्था के लिए कई प्रयास किए गए हैं । सरकार की आवश्यकताओं को गुणात्मक रूप से पूरा करने के लिए वर्ष 1956 में केंद्रीय विधि सेवा (वर्तमान भारतीय विधि सेवा की पूर्ववर्ती सेवा ) का गठन करना एक ऐसा ही प्रयास था। भारत सरकार ने भारतीय विधि सेवा नियम, 1957 के अधीन विधि और न्याय मंत्रालय में भारतीय विधि सेवा का सृजन किया। ये नियम दिनांक 1 अक्तूबर, 1957 से लागू हुए हैं। अपनी स्थापना के समय से ही भारतीय विधि सेवा के अधिकारी भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों को महत्वपूर्ण मामलों में विधिक सलाह देने तथा संसद में पेश किए जाने वाले विधेयकों और अध्यादेशों के मसौदों को तैयार करने के कार्य में पूर्ण समर्पित भाव से राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं। इस सेवा ने कई राज्यों को राज्यपाल, संसद के दोनों सदनों को महासचिव, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त, उच्च न्यायालयों को न्यायाधीश और विभिन्न अधिकरणों जैसे कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, आयकर अपीलीय अधिकरण तथा ऋण वसूली अधिकरण आदि को कई न्यायिक अधिकारी दिए हैं।
भारतीय विधि सेवा की भूमिका
भारत सरकार का प्रधान विधिक अंग होने के नाते भारतीय विधि सेवा के अधिकारियों ने सभी चुनौतियों का डटकर सामना किया है और अपने कर्तव्य का बखूबी पालन किया है । डिजिटल क्रांति ने सूचना की साझेदारी की प्रक्रिया में परिवर्तन किया है और अर्थव्यवस्था में संपदा के सृजन के नए क्षेत्रों को उत्पन्न किया है । इससे यह आवश्यक हो गया है कि भारतीय विधि सेवा के अधिकारी बढ़ती विधिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने विधिक कौशल को अद्यतन करें। सरकार के प्रधान विधि सलाहकार होने के नाते इस सेवा के अधिकारी सरकार के विभिन्न अंगों द्वारा की गई मांगों की पूर्ति के लिए शीघ्रता से कारगर ढंग से आगे आए हैं और वे सलाहकारी तथा प्रारूपण दोनों ही कार्यों में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।
2.1 सलाह ‘क’ अनुभाग
दिनांक 1.1.2017 से 31.12.2017 की अवधि के दौरान, भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों से विभिन्न मुद्दों पर विधिक सलाह और दस्तावेजों की विधीक्षा के लिए कुल 3760 निर्देश (विधि सचिव, अपर सचिवों और संयुक्त सचिवों के कार्यालयों से सलाह के लिए प्राप्त निर्देशों सहित) प्राप्त हुए, जिन पर तत्परतापूर्वक कार्रवाई की गई और इस विभाग के अधिकारियों द्वारा दी गई विधिक सलाह को आवश्यक कार्रवाई के लिए संबंधित मंत्रालयों/विभागों को भेजा गया। इसके अतिरिक्त, इस विभाग के अधिकारियों ने विभिन्न राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय बैठकों और सम्मेलनों में भी भाग लिया ।
2. विधिक सलाह देने के अलावा, इस अनुभाग ने माननीय मंत्री जी और इस विभाग के अधिकारियों को प्राप्त हुए निर्देशों और अन्य संसूचनाओं पर भी कार्रवाई की ।
3. सलाह ‘क’ और ‘ख’ अनुभागों के सूचना का अधिकार आवेदनों से संबंधित 53 मामलों पर भी कार्रवाई की गई ।
4. हस्तांतरण-लेखन से संबंधित 166 निर्देशों पर भी कार्रवाई की गई । इनमें कई मामले अंतरराष्ट्रीय करारों से संबंधित थे ।
5. उपर्युक्त अवधि के दौरान, राज्य विधेयकों और अध्यादेशों से संबंधित मंत्रिमंडल के लिए 88 नोट और 95 निर्देश भी जांच के लिए प्राप्त हुए।
2.2 सलाह ‘ख' अनुभाग
जनवरी 2017 से दिसम्बर 2017 की अवधि के दौरान, भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों से विभिन्न मुद्दों पर विधिक राय और दस्तावेजों की विधीक्षा के लिए कुल 3896 निर्देश (विधि सचिव, अपर सचिवों और संयुक्त सचिवों के कार्यालयों से सलाह के लिए प्राप्त निर्देशों सहित) प्राप्त हुए, जिन पर तत्परतापूर्वक कार्रवाई की गई और इस विभाग के अधिकारियों द्वारा दी गई राय संबंधित मंत्रालयों/विभागों को आवश्यक कार्रवाई के लिए अग्रेषित की गई।
2. उपर्युक्त के अतिरिक्त, इस विभाग के अधिकारियों ने 195 राष्ट्रीय/ अंतरराष्ट्रीय बैठकों और सम्मेलनों में भी भाग लिया ।
3. विधिक सलाह देने के अलावा, इस अनुभाग ने माननीय मंत्री जी और इस विभाग के अधिकारियों को प्राप्त हुए निर्देशों और अन्य संसूचनाओं पर भी कार्रवाई की ।
4. उपर्युक्त अवधि के दौरान, विधिक तथा संवैधानिक दृष्टि से समीक्षा किए जाने के लिए 161 मंत्रिमंडल-नोट/विधायी प्रस्ताव, एस.एल.पी./एजी/एसजी/एएसजी की राय से संबंधित 1173 मामले प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त, सलाह ‘क’ और ‘ख’ अनुभागों से संबंधित संसद-प्रश्नों और आश्वासनों से संबंधित मामलों पर भी कार्रवाई की गई ।
2.3 सलाह ‘ग' अनुभाग
वर्ष 2017 में, विभिन्न विषयों पर भारत के महान्यायवादी, भारत के महासालिसिटर और भारत के अपर महासालिसिटरों की राय प्राप्त करने के लिए 28 नए मामले भेजे गए । सभी मामलों पर राय प्राप्त कर ली गई और उसे विधि सचिव और माननीय विधि और न्याय मंत्री के अनुमोदन के पश्चात भारत सरकार के संबंधित मंत्रालयों / विभागों को अग्रेषित कर दिया गया ।
2. इस अनुभाग ने विधि और न्याय मंत्रालय के विधि कार्य विभाग और विधायी विभाग के अधिकारियों को सामान्य और सचिवीय सहायता प्रदान की और विभिन्न विषयों पर 533 मामलों की नजीरों को ढूंढने में उनकी सहायता की है ।
2.4 केन्द्रीय अभिकरण अनुभाग
केन्द्रीय अभिकरण अनुभाग की स्थापना वर्ष 1950 में की गई थी । यह अनुभाग केन्द्रीय सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों की ओर से तथा दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र, संघ राज्य क्षेत्रों, भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक के कार्यालय तथा उसके अधीन सभी क्षेत्रीय कार्यालयों की ओर से माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष मुकदमा कार्य के संचालन के लिए जिम्मेदार है । उच्चतम न्यायालय में भारत संघ की ओर से सभी विशेष अनुमति याचिकाएं, उन्हें फाइल करने की व्यवहार्यता के बारे में विधि अधिकारियों की राय प्राप्त करने के पश्चात केन्द्रीय अभिकरण अनुभाग के माध्यम से फाइल की जाती हैं। इस समय इस कार्यालय का कार्य एक संयुक्त सचिव देखते हैं; जिन्हें कार्यालय का प्रभारी घोषित किया गया है और विभागाध्यक्ष की शक्तियां प्रदान की गई हैं। उनकी सहायता के लिए 8 सरकारी अधिवक्ता और अन्य राजपत्रित अधिकारी और अराजपत्रित कर्मचारी हैं। विधि अधिकारियों की सहायता के लिए 584 सरकारी पैनल काउंसेल भी हैं ।
2. केंद्रीय अभिकरण अनुभाग के कार्य निम्नलिखित से संबंधित हैं:-
- सरकार के मंत्रालयों/विभागों से महान्यायवादी, महासॉलिसिटर और अपर महॉसालिसिटरों की राय के लिए विधि कार्य विभाग, विधि और न्याय मंत्रालय के माध्यम से प्राप्त निर्देश ।
- मामलों के लिए विधि अधिकारियों /पैनल काउंसेलों को नियोजित करना।
- संघ/राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली, नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक तथा संघ राज्य क्षेत्रों की ओर से भारत के उच्चतम न्यायालय में मुकदमों का संचालन और पर्यवेक्षण ।
- रिकार्ड का पर्यवेक्षण, विधि अधिकारियों, पैनल काउंसेलों, कंप्यूटर टाइपिस्टों और फोटोकॉपी मशीन ऑपरेटरों के फीस बिलों का भुगतान करना ।
3. वर्तमान में, केन्द्रीय अभिकरण अनुभाग के चार सरकारी अधिवक्ता उच्चतम न्यायालय के अभिलेख-अधिवक्ता हैं। एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिवक्ता को, जो अभिलेख-अधिवक्ता हैं, परामर्शदाता के तौर पर नियोजित किया गया है । ये अधिवक्ता भारत संघ, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली, नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक तथा संघ राज्य क्षेत्रों से संबंधित मामलों में उच्चतम न्यायालय के नियमों के अनुसार, उच्चतम न्यायालय के समक्ष उपसंजात होते हैं।
4. केंद्रीय अभिकरण अनुभाग के कंप्यूटरीकृत रिकार्ड के अनुसार, वर्ष 2017 के दौरान, केंद्रीय अभिकरण अनुभाग को भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों से 4199 नए मामले और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ राज्य क्षेत्रों से 327 नए मामले प्राप्त हुए। अधिकतर मुकदमे वित्त मंत्रालय, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, आयकर, रेलवे, रक्षा, केंद्रीय जांच ब्यूरो आदि से संबंधित हैं ।
2.5 दिल्ली उच्च न्यायालय में मुकदमा - कार्य
भारत सरकार के रेल और आय-कर विभागों को छोड़कर, सभी मंत्रालयों/विभागों की ओर से दिल्ली उच्च न्यायालय में मुकदमा संबंधी कार्य मुकदमा (उच्च न्यायालय) अनुभाग द्वारा किया जाता है। मुकदमा कार्य की देखरेख एक भारसाधक अधिकारी द्वारा अधीक्षक (विधि) और अन्य कर्मचारियों की सहायता से की जाती है, जिसका विवरण निम्नलिखित है:-
(क) दिल्ली उच्च न्यायालय में संचालित मुकदमे सामान्यत: निम्नलिखित से संबंद्ध होते हैं:-
भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के अधीन सिविल और दांडिक रिट याचिकाएं, विविध सिविल आवेदन, खंडपीठ अपीलें, कंपनी आवेदन, निष्पादन आवेदन और विविध दांडिक आवेदन ।
(ख) दिल्ली उच्च न्यायालय के अलावा अन्य न्यायालयों में संचालित मुकदमे सामान्यत: निम्नलिखित से संबंधित होते हैं:-
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, औद्योगिक अधिकरण व श्रम न्यायालय, एन0सी0एल0टी0, एन0सी0एल0ए0टी0, अवैध गतिविधि (निवारण) अधिकरण, ऋण वसूली अधिकरण, ऋण वसूली अपील अधिकरण, आप्रवासी अपील समिति, विद्युत अपील अधिकरण, केन्द्रीय सूचना आयोग, जिला उपभोक्ता फोरम, राष्ट्रीय हरित अधिकरण आदि।
2. मुकदमा कार्य दो अनुभागों - मुकदमा (उ0न्या0) अनुभाग 'ए' और 'बी' द्वारा किया जाता है, जिनका पर्यवेक्षण अधीक्षक (विधि) द्वारा किया जाता है । अनुभाग 'ए' भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के अधीन रिट याचिकाओं, लेटर पेटेंट अपीलों और विविध याचिकाओं से संबंधित अग्रिम नोटिसों, जिनमें सामान्य प्रकृति के मामले भी शामिल हैं, के संबंध में कार्रवाई करता है । अनुभाग 'बी' माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय में भारत संघ की ओर से दायर की गई रिट याचिकाओं और मूल/पुनरीक्षण याचिकाओं आदि के संबंध में कार्रवाई करता है। यह अनुभाग उपर्युक्त पैरा 1(ख) में उल्लिखित अन्य न्यायालयों/अधिकरणों से संबंधित मामलों में भी कार्रवाई करता है।
3. केन्द्रीय सरकार के मुकदमों का संचालन करने के लिए भारत के एक अपर महा-सालिसिटर, सत्ताईस स्थायी केंद्रीय सरकारी काउंसेल,ज्येष्ठ काउंसेलों और सरकारी प्लीडरों के पैनल हैं। सार्वजनिक महत्व के और विधि के जटिल प्रश्न वाले मामलों में विधि अधिकारियों में से किसी एक विधि अधिकारी, अर्थात् भारत के महान्यायवादी/भारत के महा-सालिसिटर/भारत के अपर महा-सालिसिटर को नियोजित किया जाता है । दिल्ली उच्च न्यायालय में मुकदमों में सरकार के हितों की रक्षा करने के लिए संबंधित मंत्रालयों/विभागों और काउंसेलों से निकट संपर्क बनाए रखा जाता है। उप विधि सलाहकार और अन्य अधिकारी मामलों की प्रगति के प्रत्येक प्रक्रम पर कड़ी निगरानी रखते हैं ।
4. वित्त वर्ष 2017-18 के बजट अनुमान में इस एकक को 5 करोड़ रु. आबंटित किए गए थे । रिपोर्ट की अवधि के दौरान, विधि अधिकारियों और सरकारी काउंसेलों के वृत्तिक फीस के लगभग 6500 बिल संदाय के लिए प्राप्त हुए । इसके अतिरिक्त, 31 मार्च, 2018 तक 2500 फ़ीस बिल और प्राप्त होने की संभावना है । दिनांक 11 दिसम्बर, 2017 तक, 4.73 करोड़ रुपये के लगभग 4800 फीस बिल निपटाए गए हैं और संबंधित विधि अधिकारियों और काउंसेलों को उनका भुगतान किया गया है।
5. दिनांक 1.4.2017 से 11.12.2017 की अवधि के दौरान, मुकदमा (उच्च न्यायालय) अनुभाग ने दिल्ली उच्च न्यायालय में मुकदमों के संचालन के लिए 4436 मामलों में विधि अधिकारी और सरकारी काउंसेल नियोजित किए । मामलों की प्राप्ति और सरकारी काउंसेलों के नियोजन का अनुभागवार ब्यौरा निम्नलिखित है:-
मुकदमा उच्च न्यायालय अनुभाग
अनुभाग | 1.4.2017 से 11.12.2017 तक प्राप्त मामलों की संख्या | 12.12.2017 से 31.3.2018 तक प्रत्याशित मामले | योग |
ए | 4015 | 1500 | 5515 |
बी | 421 | 120 | 541 |
कुल | 4436 | 1620 | 6056 |
केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण (प्रधान न्यायपीठ), दिल्ली में मुकदमा -कार्य
6. मुकदमा केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (प्रधान न्यायपीठ) प्रकोष्ठ भारत संघ के मंत्रालयों और विभागों से संबंधित मामलों / मुकदमों की देखरेख करता है और केंद्रीय
प्रशासनिक अधिकरण (प्रधान न्यायपीठ), नई दिल्ली में भारत संघ के मंत्रालयों/विभागों के हितों का बचाव करने के लिए अनुमोदित पैनल में से काउंसेल नामनिर्दिष्ट करता है ।
7. दिनांक 1.4.2017 से 11.12.2017 तक की अवधि के दौरान, मुकदमा केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (प्रधान न्यायपीठ) प्रकोष्ठ ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (प्रधान न्यायपीठ) में मुकदमों के संचालन के लिए 1413 मामलों में सरकारी काउंसेल नियोजित किए। मामलों की प्राप्ति का ब्यौरा निम्नलिखित है:-
केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण (प्रधान न्यायपीठ), दिल्ली में मुकदमा-कार्य
अनुभाग | 1.4.2017 से 11.12.2017 तक प्राप्त मामले | 12.12.2017 से 31.3.2018 तक प्रत्याशित मामले | योग |
केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण (प्रधान न्यायपीठ) प्रकोष्ठ | 1413 | 650 | 2063 |
मुकदमा (निचला न्यायालय) अनुभाग, तीस हजारी
दिल्ली/ नई दिल्ली में रेल और आय-कर विभाग को छोड़कर भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों की ओर से जिला न्यायालयों/उपभोक्ता फोरमों/अधिकरणों में मुकदमा कार्य का संचालन मुकदमा (निचला न्यायालय) अनुभाग द्वारा किया जाता है । उपर्युक्त न्यायालयों/अधिकरणों में मुकदमा कार्य की देखभाल इस अनुभाग के प्रभारी सहायक विधि सलाहकार द्वारा अधीक्षक (विधि) (इस समय यह पद रिक्त है) / सहायक (विधि) की सहायता से की जाती है ।
2. यहां अपर स्थायी सरकारी काउंसेलों का एक पैनल बनाया गया है, जिसमें से मुकदमा लड़ने के लिए काउंसेलों को नामनिर्दिष्ट किया जाता है । संबद्ध मंत्रालय/विभाग से अनुरोध प्राप्त होने पर मामले में न्यायालय में उनकी ओर से पेश होने के लिए उपयुक्त काउंसेल नियोजित किए जाने के लिए कार्रवाई की जाती है। रिपोर्ट की अवधि के दौरान इस अनुभाग ने 618 मामलों में काउंसेल नियोजित किए । जिला न्यायालयों/उपभोक्ता फोरमों/अधिकरणों में सरकार के हित की रक्षा के लिए विभिन्न विभागों/काउंसेलों के साथ हर समय निकट संपर्क बनाए रखा जाता है। दिनांक 22.12.2017 को जिला न्यायालयों/ अधिकरणों/उपभोक्ता फोरमों में कुल 8549 मामले लंबित थे।
3. काउंसेलों से प्राप्त फीस के बिलों को प्रमाणित करने और विहित दरों पर संदाय करने से पूर्व, उनकी नियुक्ति के निबंधनों और शर्तों को ध्यान में रखते हुए संवीक्षा की जाती है । रिपोर्ट की अवधि के दौरान काउंसेलों के वृत्तिक फीस के 510 बिल प्राप्त हुए और इस मद में रुपये 61,62,710/- का भुगतान किया गया ।
4. न्यायपालिका में, विशेष तौर पर जिला न्यायालयों / अधीनस्थ न्यायालयों में सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ सामंजस्य रखने के लिए और मुकदमा (निचला न्यायालय) अनुभाग के प्रभावी कार्यकरण को सुनिश्चित करने के लिए इस अनुभाग के कम्प्यूटरीकरण का प्रस्ताव राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (रा0सू0के0) द्वारा किए गए प्रणाली अध्ययन की रिपोर्ट के साथ सक्षम प्राधिकारी को प्रस्तुत किया गया है।
5. इस अनुभाग के प्रभारी शाखा अधिकारी सहायक विधि सलाहकार को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अधीन केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी के रूप में भी पदाभिहित किया गया है ।
2.6 न्यायिक अनुभाग
न्यायिक अनुभाग उच्चतम न्यायालय, विभिन्न उच्च न्यायालयों, केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण तथा जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष भारत सरकार और संघ राज्य क्षेत्रों के मुकदमा-कार्य के व्यावस्थापन के लिए उत्तरदायी है । इसके कृत्यों में केन्द्रीय सरकार की ओर से मुकदमा कार्य के संचालन के लिए भारत के महान्यायवादी, भारत के महा-सालिसिटर और अपर महा-सालिसिटरों व सहायक महा-सालिसिटरों ओर उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण, सशस्त्र बल अधिकरणों, जिला और अधीनस्थ न्यायालयों और कुछ राज्यों में उपभोक्ता फोरमों में केन्द्रीय सरकार के काउंसेलों की नियुक्ति संबंधी कार्रवाई करना, उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, अधिकरणों, जांच आयोगों, जिला और अधीनस्थ न्यायालयों, न्यायिककल्प प्राधिकरणों आदि के समक्ष मामलों के संचालन के लिए मंत्रालयों और विभागों की ओर से विधि अधिकारियों तथा अन्य काउंसेलों को नियोजित करना है । इसके कृत्यों में, मामलों के संचालन के लिए उनके निबंधनों तथा शर्तों को तैयार करना और उन्हें तय करना भी है । न्यायिक अनुभाग भारत सरकार के विभिन्न विभागों और निजी पक्षकारों के बीच विवादों में मध्य स्थल के नामांकन के लिए भी जिम्मेदार है ।
(2) यह अनुभाग, कानूनी आदेश जारी करने के लिए, जैसे कि सा0का0नि0 167 के अधीन, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की प्रथम अनुसूची के आदेश XXVII के नियम 1 के अधीन केंद्रीय सरकार द्वारा या उसके विरूद्ध रिट कार्यवाहियों में या सिविल अधिकारिता वाले किसी न्यायालय में वादों में वाद-पत्रों और लिखित कथनों पर हस्ताक्षर करने और सत्यापन करने के लिए अधिकारियों को प्राधिकृत करने हेतु आदेश जारी करने के लिए जिम्मेदार है । यह अनुभाग भारत के संविधान के अनुच्छेद 299(1) के अधीन भारत के राष्ट्रपति की ओर से संविदाओं और करारों पर हस्ताक्षर करने के लिए अधिकारियों को प्राधिकृत भी करता है ।
(3) यह अनुभाग सिविल वादों में समनों की तामील, सिविल न्यायालय की डिक्रियों का निष्पाकदन, भरण-पोषण के आदेशों का प्रवर्तन और भारत में निर्वसीयत निधन होने पर विदेशियों की संपदाओं का प्रशासन करने के लिए विदेशों के साथ पारस्परिक प्रबंध करने का कार्य भी कर रहा है ।
(4) भारत ने वर्ष 2007 में सिविल व वाणिज्यिक मामलों में विदेशों में न्यायिक व न्यायेतर दस्तावेजों की तामील के बारे में हेग कन्वेंशन को तथा सिविल व वाणिज्यिक मामलों में विदेशों में साक्ष्य लेने के हेग कन्वेंशन को अपनी सहमति प्रदान की है । इन दोनों कन्वेंशनों के लिए विधि और न्याय मंत्रालय केंद्रीय प्राधिकरण है । न्यायिक अनुभाग उक्त कन्वेंशनों के अधीन विदेशों से प्राप्त समनों/नोटिसों की न्यायिक प्राधिकरणों के माध्यम से भारतीय नागरिकों को तामील से सबंधित कार्य करता है । न्यायिक अनुभाग देश के न्यायिक प्राधिकरणों से जारी किए जाने वाले समनों/नोटिसों को तामील के लिए विदेशों के केंद्रीय प्राधिकरणों को अग्रसारित करने का कार्य भी करता है ।
विभिन्न न्यायालयो के समक्ष विधि अधिकारियो /पैनल काउंसेलों के माध्यम से केन्द्र सरकार के मुकदमों का संचालन :-
(क) उक्त अवधि के दौरान भारत के दस (10) नए सहायक महासालिसिटर विभिन्न उच्च न्यायालयों/ उच्च न्यायालयों के पीठों में नियोजित किए गए हैं। इसके अलावा, उच्चतम न्यायालय में 34 नए पैनल काउंसेल (21 समूह ‘क’; 7 समूह ‘ख’ और 6 समूह ‘ग’) नियुक्त किए गए । उसी अवधि के दौरान राज्यों में विभिन्न न्यायालयों में निम्नलिखित काउंसेल नियोजित किए गए हैं :-
क्र.सं० | राज्य/संघ राज्य क्षेत्र | नियोजित किए गए पैनल काउंसेलों की संख्या |
1. | बिहार | 66 |
2. | दिल्ली | 17 |
3. | हिमाचल प्रदेश | 02 |
4. | जम्मू और कश्मीर | 02 |
5. | केरल | 01 |
6. | ओडीशा | 02 |
7. | पंजाब व हरियाणा | 11 |
8. | राजस्थान | 37 |
9. | तमिलनाडु | 01 |
10. | त्रिपुरा | 39 |
11. | उत्तराखंड | 01 |
12. | उत्तर प्रदेश | 70 |
13. | प० बंगाल | 74 |
14. | महाराष्ट्र | 04 |
15. | तेलंगाना | 01 |
| कुल | 328 |
अधिकरणों का विलय:
वित्त अधिनियम, 2017 के जरिए संबंधित विधियों में संशोधन करके 15 अधिकरणों, अपील अधिकरणों और अन्य प्राधिकरणों का विलय करके उनकी संख्या 7 कर दी गई है। वित्त अधिनियम, 2017 में 7 विलयित अधिकरणों/ अपील अधिकरणों सहित 19 अधिकरणों और अपील अधिकरणों और अन्य प्राधिकरणों के अध्यक्षों, सदस्यों आदि की एकसमान सेवा-शर्तेां के भी उपबंध किए गए हैं।
वित्त मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना का०आ० 1696(अ०) के तहत दिनांक 26.05.2017 से वित्त अधिनियम, 2017 के अध्याय-VI के भाग XIV के उपबंधों को, जो अधिकरणों और अन्य प्राधिकरणों के विलय तथा उनके अध्यक्ष, सदस्यों आदि की सेवा-शर्तों से संबंधित हैं, लागू किया गया है। वित्त अधिनियम, 2017 की धारा 184 के अधीन, एक समान सेवा-शर्तें उपलब्ध कराने के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा दिनांक 01.06.2017 की अधिसूचना सा0का0नि0 514(अ.) के तहत अधिकरण, अपील अधिकरण तथा अन्य प्राधिकरण (सदस्यों की अर्हताएं, अनुभव तथा अन्य सेवा-शर्तें) नियम, 2017 अधिसूचित किए गए हैं।
ऐसे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों में मध्यस्थों और माध्यस्थम पैनल काउंसेलों की नियुक्ति / नामांकन करना, जिनमें एक पक्ष सरकार / सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम और दूसरा पक्ष सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम/ निजी पक्षकार होता है :
विभिन्न मंत्रालयों/विभागों/सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों इत्यादि से प्राप्त प्रस्तावों पर कार्रवाई की गई और मध्यस्थ/माध्यस्थम पैनल काउंसेल नियुक्त किए गए। उक्त अवधि के दौरान 16 (सोलह) माध्यस्थम मामलों में मध्यस्थ नियुक्ति किए गए और प्राप्त हुए 72 (बहत्तर) मामलों में माध्यस्थम पैनल काउंसेल नियुक्त किए गए।
सिविल विधि के मामलों में विदेशों के साथ संधियां/करार करना
विधि और न्याय मंत्रालय, विधि कार्य विभाग सिविल और वाणिज्यिक मामलों में विदेशों के साथ पारस्परिक करार करने के लिए नोडल मंत्रालय है। इस संबंध में ओमान के साथ सिविल और वाणिज्यिक मामलों में पारस्परिक विधिक सहायता संधि किए जाने की प्रक्रिया चल रही है।
समनों की तामील इत्यादि के संबंध में द्विपक्षीय संधियों (पारस्परिक विधिक सहायता संधियों /पारस्परिक प्रबंधों) और बहुपक्षीय संधियों (1965/1971 का हेग कन्वेंशन) से उद्भूत होने वाले अनुरोधों की जांच और उन पर कार्रवाई करना:-
विधि और न्याय मंत्रालय, विधि कार्य विभाग हेग कन्वेंशन,1965 के अधीन सिविल और वाणिज्यिक मामलों में न्यायिक और न्यायिकेतर दस्तावेजों की विदेशों में तामील के लिए केन्द्रीय प्राधिकरण है। उक्त समयावधि के दौरान इस दायित्व के अधीन, 1700 अनुरोधों पर सफलतापूर्वक कार्रवाई की गई और लगभग 800 अनुरोधों को विभिन्न कारणों/ कमियों के कारण लौटा दिया गया।
सूचना का अधिकार संबंधी कार्य
उक्त अवधि के दौरान, डाक से प्राप्त हुए कुल 92 सूचना के अधिकार आवेदनों/अपीलों पर कार्रवाई की गई। इसके अलावा, उक्त अवधि के दौरान 132 सूचना के अधिकार आवेदन ऑनलाइन प्राप्त हुए, जिनमें से 100 आवेदनों पर कार्रवाई की गई है ।
उपर्युक्त कार्य के अलावा, राष्ट्रीय वाद नीति पर भी कार्य चल रहा है।
2.7 नोटरी सेल
नोटरी सेल नोटरी अधिनियम, 1952 और नोटरी नियम, 1956 का प्रशासन करता है। नोटरी सेल देश में नोटरियों की नियुक्ति के लिए विभिन्न राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से प्राप्त निवेदनों/आवेदनों की जांच/संवीक्षा करने और नोटरियों की नियुक्ति से संबंधित कार्य करता है। यह सेल नोटरियों द्वारा किए गए वृत्तिक और अन्य अवचारों के आरोपों की जांच भी करता है। नोटरी सेल केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किए गए नोटरी के व्यवसाय के प्रमाणपत्रों का नवीकरण भी करता है। यह सेल नोटरी से आवेदन-पत्र प्राप्त होने पर और पर्याप्त कारण होने पर, उपयुक्त मामलों में, व्यवसाय के क्षेत्र में विस्तार भी प्रदान करता है।
जनवरी 2017 से दिसम्बर, 2017 तक की अवधि के दौरान 224 अधिवक्ताओं / आवेदकों को नोटरी नियुक्त किया गया है। केंद्र सरकार द्वारा अब तक देश के विभिन्न भागों में 13502 नोटरी नियुक्ति किए जा चुके हैं। इसके अलावा, समीक्षाधीन अवधि के दौरान नोटरियों के 2249 प्रमाण-पत्रों का नवीकरण भी किया गया है।
2.8 कार्यान्वयन प्रकोष्ठ
विधि आयोग की रिपोर्टें – प्रकाशन :- कार्यान्वयन सेल विधि आयोग की रिपोटों पर कार्रवाई करने, उन्हें संसद के समक्ष प्रस्तुत करने और रिपोर्टों को संबंधित मंत्रालयों/विभागों को जांच/कार्यान्वयन के लिए अग्रेषित करने तथा उन पर त्वरित कार्रवाई करवाने के लिए जिम्मेदार है। 20वें विधि आयोग के विचारार्थ विषयों के अनुसार आयोग अपनी रिपोर्ट हिंदी और अंग्रेजी में संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त प्रतियों में प्रस्तुत करता है। जैसे ही रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की जाती है, आयोग अपनी रिपोर्ट वेबसाइट के माध्यम से या अन्यथा भी उपलब्ध कराता है इसलिए विधि आयोग की रिपोर्टें प्रकाशित नहीं की जाती हैं। दिनांक 31.12.2017 तक भारत के विधि आयोग ने कुल 273 रिपोर्टें प्रस्तुत की हैं जिनमें से 270 रिपोर्टें संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखी जा चुकी हैं। शेष रिपोर्टें उचित समय में संसद में रखी जाएंगी। दिनांक 31.12.2017 तक प्राप्त सभी रिपोर्टों को संबंधित मंत्रालयों/विभागों को जांच/कार्यान्वयन अथवा उनकी ओर से अगली कार्रवाई के लिए उन्हें अग्रेषित किया गया है। कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय की विभाग संबंधित स्थायी संसदीय समिति की सिफारिशों के अनुसरण में, कार्यान्वयन प्रकोष्ठ वर्ष 2005 से संसद के दोनों सदनों के समक्ष विधि आयोग की लंबित रिपोर्टों की स्थिति दर्शाने वाला एक वार्षिक विवरण रखता आ रहा है। वर्ष 2017 का विवरण (13वां विवरण) संसद के दोनों सदनों के पटल पर दिनांक 03.01.2018 को लोक सभा में और दिनांक 05.01.2018 को राज्य सभा में रखा गया है।
विधिक शिक्षा: यह प्रकोष्ठ विधि शिक्षा में सुधार के लिए उत्तरदायी है। यह प्रकोष्ठ निम्नलिखित अधिनियमों के प्रशासन से भी संबंधित है:-
अधिवक्ता अधिनियम, 1961 :- अधिवक्ता अधिनियम, 1961 (‘‘अधिनियम’’) विधि व्यवसायियों से संबंधित कानून को संशोधित और समेकित करने तथा राज्य स्तर पर बार काउंसिलों और एक अखिल भारतीय बार के गठन की व्यवस्था के लिए अधिनियमित किया गया था। यह अधिनियम अपनी धारा 29 के तहत केवल एक श्रेणी के व्यक्तियों की पहचान करता है जो भारत में विधि व्यवसाय करने के हकदार हैं अर्थात् ‘‘अधिवक्ता’’। अधिनियम की धारा 30 को, जो प्रवृत्त नहीं थी, दिनांक 09.06.2011 की अधिसूचना का.आ. 1349(अ०) के तहत दिनांक 15 जून, 2011 से लागू किया गया है।
अधिवक्ता कल्याण निधि अधिनियम, 2001:-
कनिष्ठ वकीलों के लिए वित्तीय सहायता और निर्धन अथवा विकलांग अधिवक्ताओं के लिए कल्याण योजनाओं के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना सदैव विधिक बिरादरी का विचार का विषय रहा है। कुछ राज्यों ने इस विषय पर अपने विधान अधिनियमित किए हैं। संसद ने उन संघ राज्य क्षेत्रों और राज्यों के लिए, जिनके पास उक्त विषय में अपनी अधिनियमितियां नहीं हैं, समुचित सरकार द्वारा ‘अधिवक्ता कल्याण निधि’ के सृजन के लिए ‘अधिवक्ता कल्याण निधि अधिनियम, 2001’ अधिनियमित किया है। यह अधिनियम प्रत्येक अधिवक्ता के लिए किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकरण में दायर वकालतनामे पर अपेक्षित मूल्य के स्टाम्प लगाने को अनिवार्य करता है। ‘अधिवक्ता कल्याण निधि स्टाम्पों’ के विक्रय के माध्यम से एकत्रित धनराशि ‘अधिवक्ता कल्याण कोष’ का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। प्रैक्टिस करने वाला कोई भी अधिवक्ता आवेदन शुल्क और वार्षिक शुल्क का भुगतान कर के अधिवक्ता कल्याण निधि’ का सदस्य बन सकता है। यह निधि समुचित सरकार द्वारा स्थापित न्यासी समिति में निहित और उसके द्वारा संघटित और उसके द्वारा प्रयुक्त रहेगी। इस निधि का प्रयोग अन्य बातों के साथ सदस्य की गंभीर स्वास्थ्य समस्या, प्रैक्टिस के बंद होने या किसी सदस्य की मृत्यु की दशा में उसके नामिती या कानूनी वारिस को एक नियत धनराशि के भुगतान करने, सदस्य और उसके आश्रितों की चिकित्सा और शैक्षिक सुविधाओं, अधिवक्ताओं के लिए पुस्तकों की खरीद और सामान्य सुविधाओं के लिए उपयोग में लाई जाएगी।
2.9 सूचना का अधिकार (आरटीआई) सेल
आरटीआई सेल विधि कार्य विभाग से संबंधित आरटीआई आवेदनों, प्रथम अपीलों और द्वितीय अपीलों पर कार्रवाई करता है।
क्र.सं. | आरटीआई मामले | कुल (1.4.2017 से 31.12.2017) |
1. | प्राप्त कुल आर.टी.आई. आवेदन | 1515 |
2. | प्रथम अपील प्राधिकारी के समक्ष प्रथम अपीलें | 30 |
3. | माननीय केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपीलें | 34 |
4. | ऑनलाइन प्राप्त हुए कुल आवेदन | 255 |
2.10 पुस्तकालय और अनुसंधान अनुभाग
पुस्तकालय और अनुसंधान अनुभाग एक विशेषीकृत अनुसंधान एकक है जो विधि और न्याय मंत्रालय की विधि की पुस्तकों/जर्नलों/ऑनलाइन आईपी बेस सॉफ्टवेयर और अन्य अनुसंधान सामग्री की आवश्यकता की देखरेख करता है। यह अनुभाग माननीय विधि और न्याय मंत्री, विधि और न्याय राज्य मंत्री, विधि अधिकारियों और विधि कार्य विभाग और विधायी विभाग के भारतीय विधि सेवा अधिकारियों को संदर्भ और विधिक अनुसंधान की सेवाएं प्रदान करता है ।
2. इस वर्ष के दौरान, पुस्तकालय और अनुसंधान अनुभाग ने 577 पुस्तकें प्राप्त कीं ।
3. पुस्तकालय और अनुसंधान अनुभाग 19 भारतीय विधि जर्नलों, 3 विदेशी विधि जर्नलों को मंगाता है।
4. पुस्तकालय और अनुसंधान अनुभाग ने इस मंत्रालय के अधिकारियों के प्रयोग के लिए निम्नलिखित ऑनलाइन सेवाएं/ निर्णयज विधि, निर्णयों और आलेखों आदि की सीडी रॉम प्राप्त की है:-
(क) एआईआर कॉम्प्रिहेन्सिव सॉफ्टवेयर/डाटाबेस
(ख) एससीसी ऑनलाइन केसफांइडर
(ग) एससीसी ऑनलाइन (आई.पी.) सर्विसेज
(घ) मनुपात्र ऑनलाइन (आई.पी.) सर्विसेज
(ड़) वेस्ट लॉ इंडिया ऑनलाइन (आई.पी.) सर्विसेज
(च) सी.एल.ए. ऑनलाइन(आई0पी0)सर्विसेज
2.11 शाखा सचिवालय, मुंबई
वर्तमान में, विधि और न्याय मंत्रालय, विधि कार्य विभाग के मुंबई स्थित शाखा सचिवालय के प्रधान एक वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता हैं। उनके साथ वहां दो अपर सरकारी अधिवक्ता, दो सहायक विधि सलाहकार, एक अधीक्षक (विधि), और अन्य कर्मचारी हैं। शाखा सचिवालय के कामकाज, कर्तव्यों, संगठन आदि के बारे में निम्न पैरा में दर्शाया गया है:-
संगठन:- जहां तक मुंबई शाखा सचिवालय के कार्य का संबंध है, इसमें विधिक सलाह देना, बंबई उच्च न्यायालय से संबंधित मुकदमा कार्य की देखरेख, संपूर्ण पश्चिमी क्षेत्र के राज्यों जिनमें महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और गोवा के अंतर्गत आने वाले अन्य अधीनस्थ न्यायालयों से संबंधित मुकदमा कार्य की देखरेख और शाखा सचिवालय का प्रशासनिक कार्य शामिल है।
शाखा सचिवालय, मुंबई के प्रभारी अधिकारी वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता हैं। वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता को शाखा सचिवालय के प्रशासनिक, मुकदमा और सलाह के मामलों की देखरेख करने में दो अपर सरकारी अधिवक्ता, दो सहायक विधि सलाहकार(तदर्थ) और एक अधीक्षक (विधि) सहायता देते हैं। सहायक अनुभाग अधिकारी प्रशासनिक मामलों और लेखा के काम की देखरेख में वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता की मदद करते हैं।
इसके अतिरिक्त, शाखा सचिवालय, मुम्बई के कार्य के सुचारू संचालन के लिए उसे अलग-अलग अनुभागों में विभाजित किया गया है अर्थात सलाह अनुभाग, विविध आरंभिक शाखा मुकदमा अनुभाग, जिसमें विविध आरंभिक शाखा मुकदमा, माध्यस्थम, वाद, भूमि अधिग्रहण संबंधी निर्देश, कंपनी मामले और फेरा/फेमा/डीजीएफटी से संबंधित मामलों के आरंभिक शाखा व शाखा के मुदमे शामिल हैं तथा अपीलीय शाखा मुकदमा अनुभाग, जिसमें दंड विधि से संबंधित मामलों पर कार्रवाई की जाती है। इस शाखा सचिवालय में प्रत्येक अनुभाग के प्रमुख एक वरिष्ठ अधिकारी हैं और उनकी सहायता एक अन्य अधिकारी करते हैं।
कर्तव्यों का निर्वहन करने में अधिकारियों की सहायता के लिए दो सहायक (विधि), तीन सहायक अनुभाग अधिकारी(सीएसएस), एक प्रधान निजी सचिव, पांच वैयक्तिक सहायक, पांच वरिष्ठ कोर्ट क्लर्क ग्रेड-।, तीन वरिष्ठ कोर्ट क्लर्क ग्रेड-॥ और दो कोर्ट क्लर्क हैं।
कृत्य और कर्तव्य:- विधि और न्याय मंत्रालय, विधि कार्य विभाग, शाखा सचिवालय, मुंबई केंद्रीय सरकार के विभिन्न विभागों/मंत्रालयों से निर्देश प्राप्त होने पर विभिन्न विधिक मामलों पर विधिक सलाह देता है और बंबई उच्च न्यायालय, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण, अन्य अधिकरणों और संपूर्ण पश्चिमी क्षेत्र के सभी अधीनस्थ न्यायालयों में केंद्रीय सरकार के मुकदमा कार्य का संचालन करता है। यह संपूर्ण कार्य प्रभारी/वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता के मार्ग-निर्देशन में इस शाखा सचिवालय के अधिकारियों द्वारा किया जाता है। शाखा सचिवालय विधि सचिव से मार्गदर्शन प्राप्त करता है।
विधिक सलाह: भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों से विधिक सलाह के लिए प्राप्त निर्देशों की सबसे पहले अधीक्षक (विधि) द्वारा जांच की जाती है और तत्पश्चात उन्हें वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता/ प्रभारी अधिकारी को प्रस्तुत किया जाता है जो इन मामलों को कार्य के वितरण/आबंटन के अनुसार वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता ,अपर सरकारी अधिवक्ता, सहायक विधि सलाहकार को कार्रवाई के लिए देते हैं। यदि जरूरी हुआ तो, सलाह के मामले भारत के अपर महासालिसिटर की विशेषज्ञ राय प्राप्त करने के लिए भी भेजे जाते हैं ।
जहां तक चालू वर्ष का संबंध है, इस शाखा सचिवालय को सलाह के लिए 2513 मामले प्राप्त हुए हैं और शाखा सचिवालय ने लगभग सभी मामलों का निपटान कर दिया है और आज की तारीख में कोई भी मामला लंबित नहीं है ।
- : इस शाखा सचिवालय के मुकदमा कार्य के प्रधान वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता हैं। उनकी सहायता के लिए अपर सरकारी अधिवक्ता, सहायक विधि सलाहकार और अधीक्षक (विधि) हैं, जो बंबई उच्च न्यायालय में भारत सरकार द्वारा या उसके विरूद्ध दायर मुकदमों की देखरेख करने के काम में उनकी मदद करते हैं। इसके साथ ही, इस शाखा सचिवालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों में मुकदमा कार्य की देखरेख भी की जाती है । जहां भी आवश्यक होता है, मुकदमा कार्य का संचालन बम्बई उच्च न्यायालय के लिए उसकी साधारण प्रारंभिक सिविल अधिकारिता, अपीलीय अधिकारिता और दांडिक अधिकारिता में भारत सरकार के पैनल पर रखे गए/ नियुक्त अधिवक्ताओं/ काउंसेलों के और विभिन्न न्यायालयों के समक्ष उपसंजात होने के लिए विभिन्न पैनलों पर रखे गए अन्य काउंसेलों के माध्यम से किया जाता है ।
जहां तक चालू वर्ष का संबंध है, इस शाखा सचिवालय में विभिन्न मुकदमों से संबंधित लगभग 1135 मामले प्राप्त हुए हैं। भारत सरकार के हितों की रक्षा करने के लिए विभिन्न केंद्रीय सरकारी मंत्रालयों/विभागों के माध्यम से काउंसेल नियुक्त किए गए और उच्च न्यायालय के समक्ष मुकदमों के लगभग 696 मामले निपटाए गए हैं।
- : शाखा सचिवालय, मुम्बई के प्रशासन के प्रमुख/प्रभारी वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता हैं । शाखा सचिवालय के दिन-प्रतिदिन के प्रशासनिक मामलों की देखरेख हेतु उनकी सहायता के लिए एक सहायक अनुभाग अधिकारी और आहरण एवं संवितरण अधिकारी है। तथापि, दिनांक 27.1.2017 से अनुभाग अधिकारी का पद रिक्त है।
- : इस शाखा सचिवालय के प्रभारी अधिकारी वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ता ‘विभागीय राजभाषा अधिकारी’ के रूप में भी कार्य करते हैं और उनके द्वारा नामित अन्य अधिकारी शाखा सचिवालय में राजभाषा की उन्नति और अधिकाधिक प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए कार्य करते हैं।शाखा सचिवालय में गठित राजभाषा समिति के सदस्यों के नाम निम्नलिखित हैं:-
| कार्यकारी अध्यक्ष समन्वयक कार्यकारी सदस्य कार्यकारी सदस्य कार्यकारी सदस्य |
उपर्युक्त समिति प्रभारी अधिकारी को आवधिक रिपोर्टें प्रस्तुत करती है ।
2.12 शाखा सचिवालय, कोलकाता
वर्ष 2017-18 के दौरान, शाखा सचिवालय, कोलकाता के प्रमुख/समग्र प्रभारी एक अपर सरकारी अधिवक्ता हैं। इस शाखा सचिवालय में आठ खंड हैं, अर्थात् सलाह, प्रशासन, रोकड़ और लेखा, हिंदी, काउंसेल फीस बिल, मुकदमा, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण/ निचला न्यायालय और प्राप्ति व निर्गम अनुभाग। इसके अतिरिक्त, इस शाखा सचिवालय में एक पुस्तकालय है, जिसमें 9800 से अधिक पुस्तकें हैं। यह पुस्तकालय अगस्त, 2017 तक एक अनुभाग अधिकारी के पर्यवेक्षण में था और उसके बाद यह सहायक विधि सलाहकार के पर्यवेक्षण में है।
2. शाखा सचिवालय, कोलकाता का मुकदमा खंड कलकत्ता उच्च न्यायालय में आरंभिक और अपीलीय, दोनों शाखाओं में सभी मुकदमों की देखरेख करता है। यह शाखा सचिवालय 12 राज्यों और एक संघ राज्य क्षेत्र के उच्च न्यायालयों, पोर्ट ब्लेयर स्थित सर्किट बेंच और अधिकरणों, जिला फोरमों और निम्न न्यायालयों में भारत संघ के मुकदमा कार्य की देखरेख कर रहा है । यह शाखा सचिवालय केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, कोलकाता पीठ और उसके कटक, गुवाहाटी, पटना के अन्य पीठों तथा अंदमान निकोबार द्वीप समूह के सर्किट पीठों, सीजीआईटी, माध्यस्थम, एनजीटी,एनसीएलटी में केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के सेवा संबंधी मामलों को भी देखता है । संबंधित मंत्रालयों / विभागों से विशेष अनुरोध प्राप्त होने पर विभिन्न अधिकरणों जैसे कि एनजीटी, सीईएसटीएटी,आईटीएटी, राज्य उपभोक्ता फोरम और डीआरएटी, डीआरटी, उपभोक्ता फोरम, निम्न न्यायालय आदि के समक्ष तथा मध्यस्थों के समक्ष माध्यस्थम मामलों में पैनल काउंसेल भी नियुक्त किए जाते हैं ।
3. इस शाखा सचिवालय का सलाह खंड आय-कर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय, रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय सहित केंद्रीय सरकार के अन्य सभी मंत्रालयों/विभागों और कार्यालयों को, जिनके कार्यालय पश्चिम बंगाल, असम, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, बिहार, झारखंड, ओडिशा, त्रिपुरा, मिजोरम और सिक्किम तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह संघ राज्यक्षेत्र में स्थित हैं और पूर्वी क्षेत्र से बाहर के उन स्वायत्त निकायों जिनके मुख्यालय कोलकाता में हैं (अर्थात आर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड) को भी संबंधित विभागों/मंत्रालयों से निर्देश प्राप्त होने पर विधिक सलाह देता है और उनके मुकदमा कार्य का संचालन करता है ।
4. वर्ष 2017-18 के दौरान, सलाह खंड के प्रमुख अपर सरकारी अधिवक्ता हैं। वर्ष 2017-18 के दौरान, सलाह खंड में दिसम्बर, 2017 तक केंद्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों से सलाह के लिए कुल 1012 निर्देश प्राप्त हुए । इसके अलावा, अनुमान है कि वर्ष 2017-18 के अंत तक (मार्च, 2017-18 तक) सलाह के लिए प्राप्त निर्देशों और निपटाए गए निर्देशों की कुल संख्या लगभग 1350 होगी। यह शाखा सचिवालय विभिन्न न्यायालयों और केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण में दाखिल किए जाने वाले करारों/संविदाओं की विधीक्षा भी करता है।
5. मुकदमा खंड में, सरकारी अधिवक्ता, जो नियमित कर्मचारी होते हैं, सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश XXVII के नियम 8 ख (क) के अर्थ में अभिलेख-अधिवक्ता और सरकारी अभिवक्ता के तौर पर कार्य करते हैं और इस उद्देश्य के लिए नियोजित किए गए पैनल काउंसेल के माध्यम से मामले पर सुनवाई/बहस करवाते हैं।
6. वर्ष 2017-18 के दौरान, एक अपर सरकारी अधिवक्ता और तीन कनिष्ठ केंद्रीय सरकारी अधिवक्ताओं ने भारत संघ की ओर से कलकत्ता उच्च न्यायालय में अभिलेख अधिवक्ता के तौर पर कार्य किया और वे न्यायालय में सरकारी प्लीडर के तौर पर भी उपस्थित हुए। सलाह और मुकदमा कार्य की देखरेख के लिए तीन सहायक विधि सलाहकारों को भी तैनात किया गया है।
7. वर्ष 2017-18 के दौरान, दिसंबर, 2017 तक शाखा सचिवालय, कोलकाता के मुकदमा प्रभाग द्वारा प्राप्त और संचालित उच्च न्यायालय के मामलों की कुल संख्या 1999 है और उक्त अवधि के दौरान निपटाए गए मामलों की संख्या 1365 है। संपूर्ण 2017-18 के दौरान निपटाए जाने वाले मामलों की संख्या लगभग 2685 होने की संभावना है। इसी प्रकार, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, कलकत्ता में वर्ष 2017-18 के दौरान (दिसम्बर, 2017 तक) सेवा संबंधी मामलों में काउंसेलों के नियोजन हेतु प्राप्त मामलों की संख्या 402 है और वर्ष 2017-18 के दौरान ऐसे मामलों की कुल संख्या (मार्च, 2018 तक) लगभग 550 होने का अनुमान है। वर्ष 2017-18 में (दिसंबर, 2017 तक) माध्यस्थम मामलों सहित निपटाए गए निचले न्यायालयों के मामलों की संख्या 298 है और यह अनुमान है कि वर्ष 2017-18 की शेष अवधि के दौरान (मार्च, 2018 तक) लगभग 90 और मामले प्राप्त हो सकते हैं।
8. शाखा सचिवालय, कोलकाता में आरटीआई मामलों को देखने के लिए अपील प्राधिकारी (अपर सरकारी अधिवक्ता), केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी और केंद्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी हैं। वर्ष 2017-18 के दौरान, दिसम्बर, 2017 तक कुल 13 आरटीआई आवेदन प्राप्त हुए, जिन्हें निर्धारित समय के भीतर विधिवत निपटा दिया गया।
9. वर्ष 2017-18 के दौरान, पैनल काउंसेलों द्वारा प्रस्तुत किए गए वृत्तिक फीस बिल के दावों पर शीघ्रता से कार्रवाई की गई और काउंसेलों की वृत्तिक फीस के संदाय के लिए 4,00,00,000/- रुपए (चार करोड़ रु0) के स्वीकृत बजट प्राक्कलन में से दिसम्बर 2017 तक कलकत्ता उच्च न्यायालय से संबंधित मामलों के लिए 2,41,92,228/- रुपए (दो करोड़ इकतालीस लाख बयानवे हजार दो सौ अट्ठाईस रूपये केवल) का भुगतान किया गया है । बजट की शेष धनराशि का भुगतान 2017-18 के अगले तीन महीनों में किया जाएगा।
10. इस शाखा सचिवालय में राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए हिंदी अनुभाग है, जो अगस्त, 2017 तक अनुभाग अधिकारी के पर्यवेक्षण में रहा और तत्पश्चात सहायक विधि सलाहकार के अधीन एक कनिष्ठ हिदी अनुवादक की सहायता से कार्य कर रहा है। प्रत्येक शुक्रवार को ‘हिंदी ‘दिवस’ के रूप में मनाए जाने का निश्चय किया गया है। अप्रैल, 2017 से दिसंबर, 2017 के दौरान राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों और हिंदी कार्यशालाओं का नियमित रूप से आयोजन किया गया है। केन्द्रीय हिंदी शिक्षण योजना के अधीन कर्मचारियों को हिंदी प्रशिक्षण के लिए नियमित रूप से नामित किया जाता है। संदर्भ सामग्री तैयार की गई है और इसे हिंदी में कार्य करने के लिए अनुभागों में वितरित किया गया है। इस शाखा सचिवालय में सितंबर, 2017 में पूरे उत्साह के साथ ‘हिंदी दिवस’ मनाया गया, जिसके दौरान अन्य प्रतियोगिताओं के साथ-साथ ‘मुहावरे और वाक्यांशों’ पर एक नई प्रतियोगिता आयोजित की गई। अपेक्षित रिपोर्टें नियमित आधार पर निर्धारित प्रपत्र में मुख्य सचिवालय को भेजी जाती है। इसके अलावा, अधिकारियों ने कोलकाता में केंद्र सरकार के अन्य कार्यालयों में आयोजित विविध कार्यक्रमों में भाग लिया। अब तक कुल अधिकारियों/कर्मचारियों में से 65% ने हिंदी शिक्षण योजना के अधीन हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अनुमान है कि वर्ष 2019 तक सभी कर्मचारी ऐसे पाठ्यक्रम/प्रशिक्षण को पूरा कर लेंगे ।
11. शाखा सचिवालय, कोलकाता में एन.आई.सी. द्वारा उपलब्ध विभिन्न सॉफ्टवेयरों का प्रयोग कर विभिन्न लेखा और बजट संबंधी कार्य ऑनलाइन किया जा रहा है। साथ ही, यहां एन.आई.सी. द्वारा विकसित पी.एफ.एम.एस. पोर्टल आधारित भुगतान प्रणाली का प्रयोग किया जा रहा है। कर्मचारियों, सरकारी काउंसेलों और अन्य सेवा प्रदाताओं को ऑनलाइन भुगतान किया जा रहा है। इसके साथ-साथ, स्रोत पर काटे गए आयकर के तिमाही रिटर्न को इलैक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में तैयार किया जा रहा है और फ्लॉपियों/सीडी के रूप में टी.आई.एन. सूचना सुविधा केंद्र के द्वारा आयकर विभाग को प्रस्तुत किया जा रहा है। आयकर प्राधिकरण द्वारा एक नए फॉर्मेट अर्थात् फॉर्म 24-जी शुरु किया गया है जिसे स्रोत पर कर काटे जाने के अगले महीने की 10 तारीख तक इस कार्यालय द्वारा भर कर इलैक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में जमा किया जाना होता है। वेतन और लेखा कार्यालय को आवधिक रिपोर्ट सीधे ऑनलाइन भेजी जाती है। इसके अतिरिक्त सरकारी क्वार्टरों की लाइसेंस फीस के भुगतान की जानकारी भी सम्पदा निदेशालय को ऑनलाइन भेजनी होती है। वस्तुओं और स्टेशनरी की प्राप्ति के लिए सरकार की ई—प्रोक्योरमेंट वेबसाइट https://gem.gov.in का अत्यधिक प्रयोग हो रहा है। पेंशन के नए मामलों को ‘भविष्य’ ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से निपटाया जा रहा है।
12. शाखा सचिवालय, कोलकाता के प्रत्येक अनुभाग अधिकारी के कक्ष में लोकल एरिया नेटवर्क मुहैया कराया गया है। अब लगभग सभी कंप्यूटरों में इंटरनेट सुविधा है। भारत संचार निगम लिमिटेड से एक ‘लीज़्ड लाइन’ ई—ऑफिस के कार्यान्वयन के लिए प्राप्त की जा रही है।
13. सहायक विधि सलाहकार के पर्यवेक्षण में, शाखा सचिवालय, कोलकाता पुस्तकालय में 9800 से ज्यादा पुस्तकें और जर्नल हैं। यह मुकदमा कार्य और सलाह के लिए बहुत मददगार है। काउंसेलों द्वारा मुकदमों के संचालन के लिए इन जर्नलों/ पुस्तकों का उपयोग किया जा रहा है। इस शाखा सचिवालय द्वारा ऑनलाइन विधि पुस्तकालय ‘मनुपात्र’ और सीडीजे लॉ जर्नल की सुविधा भी मुहैया कराई गई है ।
14. शाखा सचिवालय, कोलकाता के कर्मचारियों के लिए एक बायोमीट्रिक हाजिरी व्यवस्था दिनांक 12 अप्रैल, 2011 से शुरु है। इसके अलावा, आधार आधारित बायोमीट्रिक हाजिरी व्यवस्था भी इस शाखा सचिवालय में सफलतापूर्वक शुरु की गई है।
15. शाखा सचिवालय कोलकाता में एन.आई.सी. द्वारा विकसित ‘लिम्ब्स’ सॉफ्टवेयर को भी प्रयोग में लाया जा रहा है। मुकदमा अनुभाग द्वारा विधि मंत्रालय से संबंधित मामलों को विधिवत अद्यतन किया जाता है। यह साफ्टवेयर मुकदमों को मॉनीटर करने में और मुकदमेबाजी की लागत कम करने में बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहा है। इस संबंध में यह उल्लेखनीय है कि कागजी कार्य को कम करने व मुकदमों के संचालन को सुचारू रूप से चलाने के लिए शाखा सचिवालय, कोलकाता ने उच्च न्यायालयों से संबंधित वर्ष 2005 के और उसके बाद के मामलों की सूची को विभिन्न अनुभागों में उपलब्ध कंप्यूटरों में डाला है।
16. शाखा सचिवालय, कोलकाता में दिनांक 21 जून, 2017 को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पूरे उत्साह के साथ मनाया गया।
17. शाखा सचिवालय, कोलकाता की पिछली लेखा-परीक्षा लेखा परीक्षा महानिदेशक: केन्द्रीय, कोलकाता के कार्यालय के लेखा-परीक्षा दल द्वारा दिनांक 13.05.2015 से 21.05.2015 तक की गई थी।लेखा-परीक्षा दल द्वारा लेखों के आवधिक निरीक्षण के क्रम में तीन लेखा आपत्तियां की गई थीं। इस संबंध में कार्रवाई की जा चुकी है और ऐसी दो आपत्तियों को लेखा कार्यालय द्वारा छोड़ दिया गया है और एकमात्र आपत्ति की स्थिति का सत्यापन अगली लेखा-परीक्षा द्वारा किया जाएगा।
18. शाखा सचिवालय, कोलकाता में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत स्वच्छता अभियान एक नियमित प्रकिया के तौर पर चल रहा है। ‘स्वच्छता अभियान के पर्यवेक्षण तथा पुराने अभिलेखों की छंटाई करने के लिए सहायक विधि सलाहकार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है। दिनांक 1 से 15 अप्रैल, 2017 तक ‘स्वच्छता पखवाड़ा’ मनाया गया। सफाई कर्मचारी के ग्रेड में रिक्ति होने के कारण साफ-सफाई बनाए रखने और कार्यालय परिसरों की स्वच्छता के लिए मै0 सुलभ इंटरनेशनल के जरिए प्रबंध किया गया है। इस शाखा सचिवालय ने पणधारकों को इष्टतम प्रभावी सेवाएं प्रदान करने पर तथा स्वच्छता पर जन जागरूकता के लिए सेमिनार आयोजित किए। शाखा सचिवालय के अधिकारियों और कर्मचारियों के सतत प्रयासों के कारण इस शाखा सचिवालय को स्वच्छ और सुंदर रूप मिला है ।
2.13 शाखा सचिवालय, चेन्नै
चेन्नै स्थित शाखा सचिवालय के प्रधान एक उप विधि सलाहकार हैं।
सलाह: यह शाखा सचिवालय, तमिलनाड़ु, केरल राज्यों और संघ राज्य क्षेत्र पुडुचेरी में स्थित केन्द्रीय सरकार के सभी कार्यालयों को विधिक सलाह देता है । दिनांक 1-4-2017 से 31-12-2017 तक की अवधि के दौरान, सलाह के लिए लगभग 884 निर्देश प्राप्त हुए और निपटाए गए। चालू वित्तीय वर्ष 2017-18 की शेष अवधि के दौरान सलाह के लिए लगभग 350 निर्देश और प्राप्त होने की संभावना है ।
मुकदमा कार्य : - शाखा सचिवालय, चेन्नै मद्रास उच्च न्यायालय और उसके मदुरै पीठ और केरल उच्च न्यायालय में केंद्रीय सरकार के सम्पूर्ण मुकदमा कार्य (रेल, दूरसंचार, आयकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क आदि के मामलों को छोड़कर) की देखरेख करता है । यह तमिलनाडु और केरल में नगर सिविल न्यायालयों, लघु वाद प्रेसिडेंसी न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालयों, अधिकरणों, उपभोक्ता फोरमों आदि में भी केंद्रीय सरकार के मुकदमा कार्य की देखरेख करता है । इसके अलावा, शाखा सचिवालय, चेन्नै को चेन्नै स्थित केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के मद्रास पीठ और केरल में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के एर्नाकुलम पीठ के समक्ष केंद्रीय सरकार का मुकदमा कार्य भी सौंपा गया है ।
दिनांक 1.4.2017 से 31.12.2017 की अवधि के दौरान मुकदमों के लगभग 7777 मामले प्राप्त हुए और उनका निपटान किया गया, जिनके अंतर्गत उच्च न्यायालय/ सीएटी/एलसी आदि की आवतियां, फीस बिल और खोली गई फाइलें भी शामिल हैं तथा चालू वित्त वर्ष 2017-2018 की शेष अवधि के दौरान मुकदमों से संबंधित लगभग 1500 और मामले प्राप्त होने का अनुमान है।
शाखा सचिवालय केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों और विभागों को उनके मामलों की महत्वपूर्ण गतिविधियों और मुकदमों के परिणामों से अवगत रखता है और यदि आवश्यक हुआ तो आगे के लिए उपयुक्त सलाह भी देता है । तमिलनाडु और केरल में न्यायालयों/अधिकरणों/उपभोक्ता मंचों/माध्यस्थम मामलों में फाइल किए जाने वाले अभिवचनों, शपथ पत्रों आदि की जांच की जाती है और मसौदे के चरण में उनकी विधीक्षा की जाती है। शाखा सचिवालय, चेन्नै के कार्यों में, काउंसेलों का नामांकन/नियोजन करना और केंद्रीय सरकार के संबंधित विभागों से मामले से संबंधित सामग्री एकत्र करना तथा उसे काउंसेल को सौंपने से पूर्व दस्तावेजों की कानूनी दृष्टि से आवश्यक जांच करना भी शामिल है।
काउंसेलों के फीस बिल : यह शाखा सचिवालय मद्रास उच्च न्यायालय और उसके मदुरै पीठ के मामलों में भारत के अपर महासालिसिटर, सहायक महासालिसिटर, ज्येष्ठ पैनल काउंसेल और केन्द्रीय सरकार के स्थायी काउंसेलों को सीधे अपनी केन्द्रीयकृत निधि में से स्वयं फीस का संदाय करता है । विभिन्न जिलों के स्थायी सरकारी काउंसेल के लिए प्रतिधारण शुल्क का भुगतान शाखा सचिवालय द्वारा किया जाता है (जून, 2016 से जनवरी, 2017 की अवधि के लिए वास्तविक भुगतान फरवरी, 2017 में किया गया था)। केन्द्रीय सरकार के काउंसेलों के केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण और अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष उपसंजात होने के फीस के बिलों की जांच की जाती है और उन्हें प्रमाणित करने के पश्चात संदाय के लिए संबंधित विभागों को भेज दिया जाता है ।
प्रकीर्ण : रिपोर्ट की अवधि के दौरान, सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन विभिन्न आवेदन, अपीलें और मुकदमों के संबंध में अन्य पत्र/निर्देश आदि भी प्राप्त हुए और उनका निपटान किया गया ।
शाखा सचिवालय में कर्मचारी की संख्या निम्नलिखित है:-
शाखा सचिवालय, चेन्नै में 06 महिला कर्मचारी और 11 पुरूष कर्मचारी कार्यरत हैं।
निम्नलिखित प्रवर्गों के कर्मचारियों के आंकड़े:-
सामान्य श्रेणी के कर्मचारियों के अलावा विभिन्न प्रवर्गों के 08 कर्मचारी हैं, अर्थात अनुसूचित जाति-04, अनुसूचित जनजाति- 01, पूर्व सैनिक/अन्य पिछड़ा वर्ग-03 ।
2.14 शाखा सचिवालय, बंगलूरू
शाखा सचिवालय, बंगलूरू की अधिकारिता के अंतर्गत कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में स्थित केंद्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के मुकदमों का संचालन करना और उन्हें सलाह देना है। शाखा सचिवालय, बंगलूरू के प्रधान एक उप विधि सलाहकार हैं ।
सलाह : शाखा सचिवालय, बंगलूरू, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में स्थित केंद्रीय सरकार के सभी विभागों और कार्यालयों को विधिक सलाह देता है । चालू वर्ष अर्थात् 2017-2018 के दौरान सलाह के लिए लगभग 665 निर्देश प्राप्त हुए और उन सभी का निपटान दिनांक 12.12.2017 तक कर दिया गया। सलाह कार्य में, उच्च न्यायालयों, अर्थात् कर्नाटक उच्च न्यायालय, बंगलूरू तथा कर्नाटक उच्च न्यायालय के धारवाड़ और गुलबर्ग स्थित सर्किट पीठों तथा आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष फाइल किए जाने वाले अभिवचनों, अर्थात् आक्षेपों के विवरणों, प्रति शपथपत्रों, केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण के समक्ष फाइल किए जाने वाले उत्तर के विवरणों, जिला न्यायालयों, अधीनस्थ न्यायालयों तथा विभिन्न अन्य अधिकरणों के समक्ष फाइल किए जाने वाले लिखित विवरणों, प्रति-शपथपत्रों, प्रति-विवरणों और उनके विभिन्न पाठों की जांच और उनकी विधीक्षा करना शामिल है ।
इसके अतिरिक्त, विशेष अनुमति याचिका, अपील, पुनर्विलोकन आदि फाइल करने की व्यवहार्यता की जांच करना, विभागों को, उनकी कार्रवाइयों की कानूनी मजबूती के संबंध में मार्गदर्शन करते हुए विधियों का निर्वचन करना और जब कभी आवश्यक हो, प्रशासनिक विभागों के साथ विचार-विमर्श करना आदि कार्य किए जाते हैं।
मुकदमा कार्य: यह शाखा सचिवालय, कर्नाटक उच्च न्यायालय, बंगलूरु में और उसके धारवाड़ व गुलबर्ग स्थित सर्किट पीठों में और आन्ध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में तथा बंगलूरू नगर, हैदराबाद व सिकन्दराबाद में अधीनस्थ न्यायालयों और दोनों राज्यों के केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण में केंद्रीय सरकार के विभागों और कार्यालयों के संपूर्ण मुकदमा संबंधी कार्य का पर्यवेक्षण करता है । यह शाखा सचिवालय दोनों राज्यों के जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरमों और राज्य उपभोक्ता प्रतितोष आयोगों, केंद्रीय सरकार औद्योगिक अधिकरण और ऋण वसूली अधिकरण में सरकारी मुकदमों का कार्य भी देखता है । चालू वर्ष 2017-18 के दौरान (दिनांक 12.12.2017 तक), मुकदमों से संबंधित लगभग 8797 मामले प्राप्त हुए, जिनमें काउंसेलों के नामनिर्देशन, काउंसेलों के फीस बिल और मुकदमों से संबंधित सामान्य पत्राचार शामिल है । इस संबंध में शाखा सचिवालय द्वारा किए गए कार्यों में काउंसेलों की नियुक्ति/नामनिर्देशन करना तथा उनके बीच मुकदमों का वितरण करना शामिल है ।
काउंसेलों के फीस के बिल: यह शाखा सचिवालय काउंसेलों के फीस के बिलों पर स्वयं कार्रवाई करता है और कर्नाटक उच्च न्यायालय, बंगलूरु में भारत के सहायक महासालिसिटर और केंद्रीय सरकारी काउंसेल को अपनी केंद्रीकृत निधि से सीधे फीस का भुगतान करता है । जहां तक कर्नाटक उच्च न्यायालय के धारवाड़ और गुलबर्ग के सर्किट पीठों का संबंध है, काउंसेल की फीस शाखा सचिवालय, बंगलूरू द्वारा नहीं बल्कि उस विभाग द्वारा वहन की जाती है, जिसकी ओर से मुकदमे का संचालन किया जाता है । केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में केंद्रीय सरकारी पैनल कांउसेलों की फीस का भुगतान संबंधित विभाग करते हैं । अत: यह शाखा सचिवालय काउंसेलों की फीस के बिलों को प्रमाणित नहीं कर रहा है । तथापि, इस संबंध में जब भी कोई संदेह उठता है, तो इस मंत्रालय द्वारा उसका स्पष्टीकरण किया जाता है।
भारत के अपर महासालिसिटर के कार्यालय की स्थापना:
भारत सरकार ने श्री के.एम. नटराज, वरिष्ठ अधिवक्ता और श्री प्रभुलिंग के. नवादगी, वरिष्ठ अधिवक्ता को दिनांक 8 अप्रैल, 2015 से तीन वर्ष की अवधि के लिए क्रमश: दक्षिणी जोन के लिए और कर्नाटक उच्च न्यायालय में भारत के अपर महासालिसिटर के पद पर नियुक्त किया है, जिनका मुख्यालय बंगलूरू है।
लेखा-परीक्षा पैरा: शाखा सचिवालय, बंगलूरू के संबंध में कोई लेखा-परीक्षा पैरा लंबित नहीं है ।
2.15 भारत का विधि आयोग
भारत के विधि आयोग का गठन हर तीन साल में होता है। वर्तमान 21वें विधि आयोग का गठन दिनांक 1 सितंबर, 2015 को हुआ था और यह दिनांक 31 अगस्त, 2018 तक रहेगा। 21वें विधि आयोग में एक अध्यक्ष, दो पूर्णकालिक सदस्य, एक सदस्य–सचिव, दो पदेन सदस्य और तीन अंशकालिक सदस्य हैं। विधि आयोग में भारतीय विधि सेवा के विधि अधिकारी शामिल हैं, कुछ सलाहकार हैं, जो विधि शोध का अनुभव रखते हैं। प्रशासन की देखरेख के लिए एक छोटा सचिवीय स्टाफ है।
विचारार्थ विषय
- 21वें विधि आयोग को सौंपे गए विचारार्थ विषय निम्नलिखित हैं-
क. अप्रचलित विधियों का पुनर्विलोकन/निरसन :
- विधियों की पहचान करना जो अब आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह गई हैं और जिन्हें तत्काल निरसित किया जा सकता है ।
- विधियों की पहचान करना जो आर्थिक उदारीकरण के विद्यमान परिवेश के सामंजस्य में नहीं हैं और जिनमें परिवर्तन की आवश्यकता है।
- विधियों की पहचान करना जिनमें परिवर्तन या संशोधन अपेक्षित हैं और उनके संशोधन के लिए सुझाव देना ।
- मंत्रालयों/विभागों के विशेषज्ञ समूहों द्वारा दिए गए पुनरीक्षण/ संशोधन के सुझावों पर, उनके समन्वयन और सामंजस्यकरण की दृष्टि से व्यापक परिप्रेक्ष्य में विचार करना।
- से अधिक मंत्रालयों/ विभागों के कार्यकरण पर प्रभाव डालने वाले विधान की बाबत मंत्रालयों/विभागों द्वारा विधि कार्य विभाग, विधि और न्याय मंत्रालय के माध्यम से किए गए निर्देशों पर विचार करना ।
- के क्षेत्र में नागरिकों की शिकायतों को शीघ्र दूर करने के लिए उपयुक्त उपायों का सुझाव देना ।
ख. विधि और निर्धनता :
(i) ऐसी विधियों की जांच करना जो निर्धनों पर प्रभाव डालती हैं और सामाजिक - आर्थिक विधानों के लिए पश्च-संपरीक्षा करना ।
(ii) ऐसे सभी उपाय करना जो निर्धनों की सेवा में विधि और विधिक प्रक्रिया को उपयोग में लाने के लिए आवश्यक हों।
ग. यह सुनिश्चित करने के लिए न्याय प्रशासन की पद्धति का पुनर्विलोकन करते रहना कि वह समय की उचित मांगों के लिए प्रभावी बनी रहे और विशेष रूप से, निम्नलिखित को सुनिश्चित करना :--
- को दूर करना, बकाया मामलों का शीघ्र निपटान करना और खर्च में कमी करना ताकि इस आधारभूत सिद्धांत कि विनिश्चय न्यायपूर्ण और निष्पक्ष होने चाहिए पर प्रभाव डाले बिना, मामलों का शीघ्र और मितव्ययी निपटान सुनिश्चित किया जा सके ।
- युक्तियों और तकनीकी जटिलताओं को दूर करने या कम करने के लिए प्रक्रिया का सरलीकरण करना, जिससे वह स्वयं में साध्य बनकर न रह जाए बल्कि न्याय की प्राप्ति में एक साधन के रूप में प्रयुक्त हो ।
- प्रशासन से संबद्ध सभी मानदंडों में सुधार ।
घ. विद्यमान विधियों की राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के आलोक में परीक्षा करना और उनमें सुधार तथा उन्नति के तरीकों का सुझाव देना और ऐसे विधानों का सुझाव भी देना जो निदेशक सिद्धांतों के कार्यान्वयन के लिए और संविधान की उद्देशिका में वर्णित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक हों ।
ङ लैंगिक समानता के संवर्धन की दृष्टि से विद्यमान विधियों की परीक्षा करना और उनमें संशोधनों के लिए सुझाव देना ।
च. सार्वजनिक महत्व के केन्द्रीय अधिनियमों का पुनरीक्षण करना जिससे उन्हें सरल बनाया जा सके और उनकी विसंगतियों, संदिग्धताओं तथा असमानताओं को दूर किया जा सके ।
छ. अप्रचलित विधियों और ऐसी अधिनियमितियों या उनके ऐसे भागों को, जिनकी उपयोगिता नहीं रह गई है, निरसित करके कानून को अद्यतन करने के उपायों की सरकार को सिफारिश करना ।
ज. विधि और न्याय प्रशासन से संबंधित ऐसे किसी भी विषय पर, जो विधि और न्याय मंत्रालय (विधि कार्य विभाग) के माध्यम से सरकार द्वारा उसे निर्देशित किया जाए, विचार करना और अपने अभिमत से सरकार को अवगत कराना ।
झ. अनुसंधान प्रदान करने के लिए विदेशों से प्राप्त अनुरोधों पर, जो उसे सरकार द्वारा विधि और न्याय मंत्रालय (विधि कार्य विभाग) के माध्यम से भजे गए हों, पर विचार करना।
ञ. खाद्य सुरक्षा, बेरोजगारी पर वैश्वीकरण के प्रभाव की जांच करना और गरीबों के हितों की रक्षा के लिए उपायों की सिफारिश करना ।
छात्रों को प्रोत्साहन
3. विधि के शासन की स्थापना और उसके लिए विधि की बेहतर समझ हेतु विधि के छात्रों में विधि के अनुसंधान और विधि में सुधार की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने के लिए विधि आयोग द्वारा इंटर्नशिप कार्यक्रम संचालित किया जाता है।
4. विधि आयोग स्वैच्छिक इंटर्नशिप कार्यक्रम, ग्रीष्मकालीन इंटर्नशिप कार्यक्रम, शीतकालीन इंटर्नशिप कार्यक्रम और मध्यावधि इंटर्नशिप कार्यक्रम संचालित करता है। ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन इंटर्नशिप कार्यक्रम सेमेस्टर ब्रेक के दौरान संचालित किए जाते हैं जबकि मध्यावधि इंटर्नशिप कार्यक्रम एक खुला कार्यक्रम है, जिसके माध्यम से इच्छुक छात्रों को वर्ष के दौरान किसी भी समय आयोग के साथ इंटर्नशिप करने का अवसर दिया जाता है।
उद्देश्य और उपलब्धियां :-
5. भारत के विधि आयोग ने अब तक विभिन्न विषयों पर 273 रिपोर्टें प्रस्तुत की हैं। भारत के 21वें विधि आयोग ने विधि कार्य विभाग, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्देश पर विभिन्न विषयों का अध्ययन किया है और अब तक राष्ट्रीय वाद नीति, 2016 के मसौदे पर रिपोर्ट सहित 12 रिपोर्टें प्रस्तुत की हैं।
6. 21वें विधि आयोग ने अब तक निम्नलिखित रिपोर्टें प्रस्तुत की हैं :- बाल संरक्षण (अंतर-देशीय अपसारण और प्रतिधारण) विधेयक, 2016, दंड विधि (संशोधन) विधेयक, 2017 (खाद्य अपमिश्रण संबंधी उपबंध), ‘अवयस्क’ के भरण-पोषण धन से उद्भूत आय को छूट देने की प्रत्याशाएं, अधिवक्ता अधिनियम, 1961 (विधिक वृत्ति का विनियमन), घृणापूर्ण भाषण, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में संशोधन (जमानत संबंधी उपबंध), अंडे देने वाली मुर्गियों (लेयरों) और ब्रोयलर चिकन का परिवहन और रखरखाव, विवाह का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण, मानव डी.एन.ए. प्रोफाइल- डी.एन.ए आधारित तकनीक के उपयोग और विनियमन के लिए प्रारूप विधेयक, राष्ट्रीय वाद नीति, 2016 की जांच, भारत में अधिकरणों के सांविधिक ढांचे का मूल्यांकन, विधान के जरिए ‘यंत्रणा और अन्य क्रूर, अमानवीय और अवमानजनक व्यवहार या दंड के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र के कंवेंशन’ का कार्यान्वयन ।
7. विधि आयोग ने नीति आयोग के साथ समन्वय से दिनांक 25-26 नवंबर, 2017 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में राष्ट्रीय विधि दिवस समारोह का आयोजन किया । विधि दिवस समारोह, 2017 का केन्द्रीय विषय ‘विकासशील राष्ट्र के लिए समावेशन और सबके विकास व सबको न्याय के आधार पर राज्य के तीनों स्कंधों, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच तालमेल’ था।
8. विधि आयोग के विचाराधीन कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाएं इस प्रकार हैं, जिनमें ‘सट्टे और जुए के नियमितीकरण’ से संबंधित मुद्दे, बीसीसीआई को आर.टी.आई के अधीन लाना, एक समान सिविल कोड से संबंधित मामलों की जांच संबंधी प्रस्ताव’, आपराधिक न्याय प्रणाली की व्यापक समीक्षा’ और ‘मानव निर्मित आपदा’ शामिल हैं।
2.16 आयकर अपीलीय अधिकरण, मुंबई
उद्गम: आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 252 में यह उपबंध है कि केंद्रीय सरकार, अधिनियम में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने और कृत्यों का निर्वहन करने के लिए उतने न्यायिक सदस्यों और लेखा सदस्यों से, जितने वह ठीक समझे, एक अपीलीय अधिकरण का गठन करेगी । भारतीय आयकर अधिनियम, 1922 में अंतर्विष्ट ऐसे ही उपबंध के अनुसरण में दिनांक 25 जनवरी, 1941 को आयकर अपीलीय अधिकरण की स्थापना की गई थी ।
गठन: आयकर अधिनियम, 1961 में यह भी उपबंध है कि अधिकरण का न्यायिक सदस्य एक ऐसा व्यक्ति होगा जिसने भारत के राज्य क्षेत्र में कम-से-कम दस वर्ष तक न्यायिक पद धारण किया हो या जो भारतीय विधि सेवा का सदस्य रहा हो और जिसने कम-से-कम तीन वर्ष तक उस सेवा के ग्रेड 2 में कोई पद या उसके समतुल्य या उच्चतर पद धारण किया हो या जो कम-से-कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो । लेखा सदस्य एक ऐसा व्यक्ति होगा जिसने चाटर्ड अकाउंटेंट अधिनियम, 1949 (1949 का 38) के अधीन चार्टर्ड अकाउंटेट के रूप में लेखाकर्म का कम-से-कम दस वर्ष तक व्यवसाय किया हो या पूर्व में प्रवृत्त किसी विधि के अधीन एक रजिस्ट्रीकृत अकाउंटेंट या आंशिकत: रजिस्ट्रीकृत अकाउंटेंट और आंशिकत: चार्टर्ड अकाउंटेंट रहा हो या जो भारतीय आयकर सेवा समूह 'क' का सदस्य रहा हो और जिसने कम-से-कम तीन वर्ष तक (अपर) आय-कर आयुक्त का पद या उसके समतुल्य या उच्चतर पद धारण किया हो ।
सदस्यों और कर्मचारियों की कमी: देशभर के 28 शहरों में स्थित 63 बेंचों के लिए अधिकरण के सदस्यों की वर्तमान स्वीकृत संख्या 126 है, जिनमें से केवल 96 सदस्य ही पदस्थ हैं और तदनुसार आज की तारीख में सदस्यों के 30 पद रिक्त हैं। अधिकरण वर्तमान में अध्यक्ष के नेतृत्व में कार्यरत है तथा उनकी सहायतार्थ 9 उपाध्यक्ष हैं। वर्तमान में, उपाध्यक्ष के 6(छह:) पद तथा सदस्यों के 24(चौबीस) पद रिक्त हैं।
जहां तक रजिस्ट्री अधिकारियों, वरिष्ठ निजी सचिवों और निजी सचिवों की कमी का संबंध है, यह निवेदन किया जाता है कि फिलहाल उप पंजीकार के सभी सात स्वीकृत पद रिक्त हैं और सहायक पंजीकारों के 38 स्वीकृत पदों में से 30 पद रिक्त हैं । इसके अतिरिक्त, हिंदी अधिकारी के स्वीकृत दो(2) पद हैं, और वर्तमान में ये दोनों ही रिक्त हैं। वरिष्ठ निजी सचिवों के 126 स्वीकृत पदों में से 32 पद रिक्त हैं और निजी सचिवों के 47 स्वीकृत पदों में से 25 पद रिक्त हैं । आयकर अपीलीय अधिकरण में अन्य पदों की रिक्तियों का विवरण निम्नानुसार है :-
क्र. सं. | पद | रिक्तियां |
1 | वरिष्ठ लेखाकार | 2 |
2 | अधीक्षक | 1 |
3 | कार्यालय अधीक्षक | 1 |
4 | हिन्दी अनुवादक | 11 |
5 | पुस्तकालयाध्यक्ष | 1 |
6 | मुख्य लिपिक | 0 |
7 | उच्च श्रेणी लिपिक | 46 |
8 | आशुलिपिक ग्रेड घ | 4 |
9 | अवर श्रेणी लिपिक | 72 |
10 | स्टाफ कार चालक | 18 |
11 | मल्टी टास्किंग स्टाफ | 102 |
| कुल | 258 |
शक्तियां और कृत्य: आयकर अधिनियम के अधीन गठित आयकर अपीलीय अधिकरण प्रत्यक्ष कर के सभी मामलों में द्वितीय अपीलों तथा प्रशासनिक आयुक्तों के पुनरीक्षण आदेशों के विरूद्ध अपीलों और आयकर अधिनियम के अध्याय-XX-क के अधीन संपत्ति के अर्जन के आदेशों के विरूद्ध अपीलों का निपटान करता है ।
आयकर अपीलीय अधिकरण की शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन अधिकरण के अध्यक्ष द्वारा इसके सदस्यों में से गठित की गई न्यायपीठों द्वारा किया जाता है । एक न्यायपीठ में एक न्यायिक सदस्य और एक लेखा सदस्य होता है । अध्यक्ष या केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया गया अधिकरण का कोई अन्य सदस्य एकल रूप में बैठकर किसी मामले को निपटा सकेगा जो ऐसे न्यायपीठ को आबंटित किया गया है जिसका वह सदस्य है और जो ऐसे निर्धारिती से संबंधित है जिसकी मामले में निर्धारण अधिकारी द्वारा यथासंगणित कुल आय पांच लाख रूपये से अधिक नहीं है और अध्यक्ष, आयकर अधिनियम, 1961 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी विशिष्ट मामले के निपटारे के लिए तीन या इससे अधिक सदस्यों का विशेष न्यायपीठ गठित कर सकेगा, जिसमें आवश्यक रूप से एक न्यायिक सदस्य और एक लेखा सदस्य होगा ।
प्रक्रिया और नियम : अपीलीय अधिकरण को उन सभी विषयों में जो उसकी शक्तियों के प्रयोग और कृत्यों के निवर्हन से उत्पन्न होते हैं, जिसके अंतर्गत वे स्थान भी हैं जहां न्यायपीठ अपनी बैठक करेंगे, स्वयं की प्रक्रिया और अपने न्यायपीठों की प्रक्रिया विनियमित करने की शक्ति प्राप्त है ।
तदनुसार, अपीलीय अधिकरण ने अपने नियम बनाए हैं जिन्हें आयकर (अपीलीय अधिकरण) नियम, 1963 कहा जाता है । उक्त नियम आयकर अपीलीय अधिकरण के समक्ष लंबित सभी मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं । यह अधिकरण न केवल आयकर से संबंधित मामलों में अपितु धन-कर, दान-कर और व्यय-कर आदि जैसे कराधान के सभी मामलों में अंतिम तथ्यान्वेषण-प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है । अपीलीय अधिकरण में दक्ष कार्मिक हैं जो अपनी पूरी योग्यता से अपने कृत्यों का निर्वहन करते हैं और कर-दाता और राजस्व के बीच बिना किसी भय के निष्पक्ष रूप से न्याय का पलड़ा बराबर बनाए रखते हैं ।
सामान्यत: अपीलों की सुनवाई एक लेखा सदस्य और एक न्यायिक सदस्य से मिलकर बने न्यायपीठ द्वारा की जाती है । तथापि, समुचित मामलों में अध्यक्ष के विवेक से किसी न्यायपीठ में दो से अधिक सदस्य हो सकते हैं ।
जिन मामलों का निपटारा अपीलीय अधिकरण करता है, वे अत्यंत महत्व के होते हैं और उनमें लाखों रूपयों का राजस्व शामिल होता है । अधिकरण को विधि और तथ्य के जटिल प्रश्नों का विनिश्चय करने का दायित्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है । न्यायिक और लेखा सदस्य, दोनों की उपस्थिति इस बात को सुनिश्चित करती है कि उनके विचाराधीन मामलों में तथ्य के प्रश्नों की समुचित रूप से जांच की गई है और उसमें कानूनी पहलू के साथ-साथ लेखा की दृष्टि से भी पूरा-पूरा ध्यान दिया गया है । अधिकरण अपील के दोनों पक्षकारों के प्रतिनिधियों को अपने समक्ष अपील करने की अनुमति देता है और कोई आदेश पारित करने से पूर्व अनिवार्यत: उनकी सुनवाई करता है । सदस्य पक्षकारों की सुनवाई करते हैं, अभिलेख पर साक्ष्य का अवलोकन करते हैं, उन पर अपने टिप्पण लिखते हैं,न्यायालय में उद्धृत नजीरों को निर्दिष्ट करते हुए आपस में परामर्श करते हैं और फिर अंतिम आदेश पारित करते हैं । यह प्रक्रिया अपने आप में ही एक गारंटी है कि तथ्यों के प्रश्न समुचित रूप से और न्यायिकत: विनिश्चित किए जाते हैं और अधिकरण द्वारा निकाले गए निष्कर्ष निष्पक्ष और निर्दोष होते हैं ।
लंबित अपीलें
वर्ष 2017 के प्रारंभ में आयकर अपीलीय अधिकरण में लंबित अपीलों की संख्या 91538 थी और दिनांक 1 जनवरी, 2018 को लंबित अपीलों की संख्या 91657 है।
निम्नलिखित सारणी से देखा जा सकता है कि नव-सृजित पीठों के चालू होने के बाद से लंबन को कम करने की वचनबद्धता के उत्साहजनक परिणाम रहे हैं :-
वर्ष | दाखिल की गई अपीलों की संख्या | निपटाई गई अपीलों की संख्या | वर्ष के अंत में लम्बित अपीलों की संख्या | |
2004-2005 | 57331 | 78901 | 137164 | |
2005-2006 | 45283 | 73979 | 108468 | |
2006-2007 | 43192 | 65524 | 86136 | |
2007-2008 | 44356 | 59653 | 70839 | |
2008-2009 | 40372 | 55889 | 55322 | |
2009-2010 | 41648 | 49353 | 47617 | |
2010-2011 | 44250 | 36293 | 55574 |
|
2011-2012 | 42346 | 33816 | 64104 |
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2012-2013 | 43934 | 33752 | 74286 |
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2013-2014 | 46031 | 31886 | 88643 |
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2014-2015 | 45072 | 30494 | 103238 |
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2015-2016 | 40087 | 51010 | 91971 |
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2016-2017 | 48328 | 48385 | 92386 |
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2017-2018 31.12.2017 तक | 36384 | 37678 | 91643 |
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लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए किए गए प्रयास: सभी न्यायपीठों को आवश्यक निर्देश जारी किए गए हैं कि वे आयकर अपीलीय अधिकरण, उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के विनिश्चयों के अंतर्गत आने वाले मामलों की जांच करें और उनकी पहचान करें तथा प्राथमिकता के आधार पर उन्हें पोस्ट करें । इनमें समूह के और छोटे मामले शामिल हैं । बार से भी यह अनुरोध किया गया है कि इस प्रकार के सभी मामलों को बारी से पहले निपटान हेतु पोस्ट करने के लिए आयकर अपीलीय अधिकरण के ध्यान में लाया जाए । इसके अतिरिक्त, धारा 263 के अधीन तलाशी और जब्ती तथा अपीलों को निपटान के लिए प्राथमिकता दी जा रही है। वित्त अधिनियम, 2015(सं० 66) के अधीन आयकर अधिनियम, 1961 में यह संशोधन किया गया है कि 15 लाख तक की आय से संबंधित अपील की सुनवाई एकल-सदस्यीय पीठ द्वारा की जा सकती है। तदनुसार इसे लागू किया गया है।
एक सदस्य वाले मामलों के लंबन के आंकड़े निम्नानुसार हैं:-
माह | कुल लम्बित मामले |
जनवरी, 2017 | 13978 |
फरवरी, 2017 | 13875 |
मार्च, 2017 | 13844 |
अप्रैल, 2017 | 13712 |
मई, 2017 | 13794 |
जून, 2017 | 13530 |
जुलाई, 2017 | 13494 |
अगस्त, 2017 | 12412 |
सितम्बर, 2017 | 12315 |
अक्टूबर, 2017 | 12117 |
नवम्बर, 2017 | 12139 |
दिसम्बर, 2017 | 8379 |
धन कर के मामलों के लंबन के आंकड़े निम्नानुसार हैं :-
माह | कुल लम्बित मामले |
जनवरी, 2017 | 336 |
फरवरी, 2017 | 355 |
मार्च, 2017 | 379 |
अप्रैल, 2017 | 411 |
मई, 2017 | 411 |
जून, 2017 | 396 |
जुलाई, 2017 | 408 |
अगस्त , 2017 | 414 |
सितम्बर, 2017 | 448 |
अक्टूबर, 2017 | 436 |
नवम्बर, 2017 | 442 |
दिसम्बर, 2017 | 449 |
आयकर अपीलीय अधिकरण के 63 स्वीकृत पीठ हैं जिनमें सदस्यों की अपेक्षित संख्या 126 है और वर्तमान में केवल 96 सदस्य हैं तथा कुछ पीठों के नियमित रुप से कार्य नहीं करने के कारण लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है ।
कम्प्यूटरीकरण: आयकर अपीलीय अधिकरण में कंप्यूटरीकरण की प्रक्रिया वर्ष 2000 के प्रारंभ में शुरू हुई थी और हाल के वर्षों में अधिकरण की दैनंदिन गतिविधियों में कई नवीन परियोजनाओं के कार्यान्वयन से इसमें तेजी आई है । इन वर्षों में अधिकरण द्वारा अपने आदर्श वाक्य ‘निष्पक्ष सुलभ सत्वर न्याय’ को चरितार्थ करने के लिए विभिन्न परियोजनाएं चलाई गई हैं।
उपलब्धियां :
- आई.टी.ए.टी. ऑनलाइन परियोजना: यह पायलट परियोजना अधिकरण में न्यायिक प्रशासन की प्रक्रिया को स्वचालित बनाने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है, जिसमें अपीलों और आवेदनों की प्राप्ति और पंजीकरण से लेकर उनका निपटान होने तक की स्थिति तथा अधिकरण के आदेशों को अपलोड किया जाता है। यह परियोजना अधिकरण के सभी पीठों में चरणबद्ध रूप से कार्यान्वित की गई है। आई.टी.ए.टी. ऑनलाइन एक वेब आधारित अनुप्रयोग है, जिसे कभी भी कहीं से भी प्रयोग किया जा सकता है। अब आयकर अपीलीय अधिकरण के सभी पीठ आई.टी.ए.टी. ऑनलाइन डाटाबेस से जोड़े जा चुके हैं तथा पंजीकरण, डाटा अपडेशन, अधिकरण के आदेश अपलोड करना आदि गतिविधियां वेब अनुप्रयोग द्वारा की जा रही हैं । इस परियोजना का वेब व डाटाबेस सर्वर एनआईसी क्लाउड डाटा सेंटर को स्थानांतरित किया गया है ।
- आई.टी.ए.टी. की आधिकारिक वेबसाइट: आई.टी.ए.टी. ऑनलाइन परियोजना के विस्तार के रूप में आयकर अपीलीय अधिकरण की आधिकारिक वेबसाइट बनाई गई है और आम जनता को न्यायिक और सामान्य जानकारी देने के लिए चालू की गई है । इस आधिकारिक वेबसाइट को प्रयोक्ताओं के अधिक अनुकूल बनाने और वेबसाइटों के लिए भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार अधिक सुग्राही और अद्यतन बनाने के लिए इसका डिजाइन फिर से तैयार किया गया है। इसमें अधिकरण में आने वाले वादकारियों की न्यायिक सूचनाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए गतिशील सूचना जैसे कि वाद-सूची, संविधान, मामले की स्थिति, आदेश की खोज, निर्णयों की खोज आदि जानकारी उपलब्ध कराई गई है । इसके अलावा, वादकारियों को और आम जनता को छुट्टियों की सूची, निविदा और नीलामी, सूचनापट्ट, सूचना का अधिकार आदि स्थिर प्रकार की जानकारी भी सुलभ कराई गई है । इस वेबसाइट का व्यापक उपयोग हो रहा है और इसकी सराहना हुई है। आयकर अपीलीय अधिकरण की इस वेबसाइट और वेब एप्लीकेशन को द्विभाषी बनाया गया है। आयकर अपीलीय अधिकरण अपने आई.पी.ए.टी. आनलाइन डाटा को नेशनल जूडीशियल रेफरेंस सिस्टम (एनजेआरएस) परियोजना के साथ साझा कर रहा है, जिसके लिए वेब एप्लीकेशन में कुछ प्रावधान किए गए हैं।
- एन.आई.सी. ई-मेल: आयकर अपीलीय अधिकरण के सामान्य प्रशासन में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ाने और विभिन्न पीठों, सदस्यों और अधिकारियों के बीच प्रभावी संचार के लिए आयकर अपीलीय अधिकरण राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र की ई-मेल सुविधाओं का उपयोग करता है । सभी पीठों, क्षेत्रों, सदस्यों, रजिस्ट्री के अधिकारियों, वरिष्ठ निजी सचिवों/ निजी सचिवों तथा प्रधान कार्यालय के सभी अनुभागों के लिए एनआईसी ई-मेल खाते बनाए गए हैं । संचार के पारंपरिक तरीकों की तुलना में प्रयोग में आसान, तेज और आर्थिक व पारिस्थितिक दृष्टि से लाभदायक होने के कारण हाल के वर्षों में ई-मेल का प्रयोग उपयोगकर्ताओं के बीच स्वीकृति हासिल कर रहा है और इसका उपयोग लगातार बढ़ रहा है ।
- आधारिक संरचना का उन्नयन : आयकर अपीलीय अधिकरण को हमेशा से लगता रहा है कि बेहतर कंप्यूटरीकरण के लिए बेहतर आधारिक संरचना होना जरूरी है । तदनुसार, आयकर अपीलीय अधिकरण चरणबद्ध तरीके से पुराने और अप्रचलित कंप्यूटरों, प्रिंटरों आदि उपकरणों को बदल कर नए उपकरण लाता रहा है। आयकर अपीलीय अधिकरण के सभी सदस्यों को कार्यालय प्रयोग के लिए लैपटाप पहले ही दे दिए गए हैं ।
भविष्य की परियोजनाएं
- ई-फाइलिंग शुरू करना
आयकर अपीलीय अधिकरण ने इस परियोजना में एक नए माड्यूल सिटीजन टू गवर्नमैंट (सी2जी) माड्यूल अर्थात ‘ई-फाइलिंग’ को भी शामिल किया है जिससे वादकारी अपने घर से ही अधिकरण के समक्ष अपनी अपील और आवेदन ऑनलाईन दाखिल कर सकते हैं तथा इससे एसएमएस, ईमेल और मोबाइल एप्लिेकेशन्स के द्वारा सूचना का प्रसार किया जा सकता है । इस परियोजना में, उचित समय पर न्यायालयों के कामकाज को कागज-विहीन कर देने का प्रावधान भी शामिल किया गया है। ई-फाइलिंग मोड्यूल और मोबाइल एप्लीकेशन संभवत: आने वाले महीनों में शुरू कर दिए जाएंगे।
(ख) ई- न्यायालय
पिछले वर्ष के दौरान, आयकर अपीलीय अधिकरण के राजकोट, जबलपुर और गुवाहाटी पीठों में ई-न्यायालय की स्थापना की गई । आयकर अपीलीय अधिकरण के राजकोट, जबलपुर और गुवाहाटी पीठों में क्रमश: अहमदाबाद, दिल्ली और कोलकाता पीठों को जोड़ते हुए कार्यवाहियां संचालित की गईं । ई-न्यायालय के माध्यम से दिनांक 31.12.2017 तक आयकर अपीलीय अधिकरण, अहमदाबाद में कुल 1273 अपीलों, आयकर अपीलीय अधिकरण, दिल्ली पीठ में कुल 34 अपीलों और आयकर अपीलीय अधिकरण, कोलकाता पीठ में कुल 146 अपीलों का निपटान किया गया है ।
वर्तमान में, रांची पीठ के एक और पीठ को ई-न्यायालय में विकसित करने की प्रक्रिया चल रही है ।
ई-न्यायालय के माध्यम से कार्य कर रहे पीठों की वर्तमान स्थिति निम्नलिखित है :
क्रम सं० | कार्यरत पीठ |
1. | नई दिल्ली, क्षेत्रीय कार्यालय |
2. | अहमदाबाद, क्षेत्रीय कार्यालय |
3. | कोलकाता, क्षेत्रीय कार्यालय |
4. | जबलपुर पीठ |
5. | राजकोट पीठ |
6. | गुवाहाटी पीठ |
निम्नलिखित पीठों में ‘ई-न्यायालय’ बनाने का कार्य चल रहा है:-
क्रम सं० | प्रक्रियाधीन पीठ |
1. | मुम्बई, प्रधान कार्यालय |
2. | मुम्बई, अध्यक्ष का चैंबर |
3. | बंगलूरू, क्षेत्रीय कार्यालय |
4. | चेन्नै, क्षेत्रीय कार्यालय |
5. | चंडीगढ़, क्षेत्रीय कार्यालय |
6. | लखनऊ, क्षेत्रीय कार्यालय |
7. | हैदराबाद, क्षेत्रीय कार्यालय |
8. | पुणे, पीठ |
9. | जोधपुर पीठ |
10. | जयपुर पीठ |
11. | रांची पीठ |
राजकोट पीठ के उपकरण के सही ढंग से कार्य नहीं करने के कारण लखनऊ पीठ के वीडियो कान्फ्रेंसिंग उपकरण को राजकोट पीठ में स्थानांतरित किया गया है ।
सूरत पीठ की स्थापना :- विधि और न्याय मंत्रालय ने आयकर अपीलीय अधिकरण, कोलकाता के पांच पीठों में से एक पीठ का सूरत में स्थानांतरण करके वहां एक पीठ की स्थापना किए जाने के आयकर अपीलीय अधिकरण के प्रस्ताव का अनुमोदन किया है। तत्पश्चात, अधिकारिता में परिवर्तन के संबंध में आयकर अपीलीय अधिकरण के स्थायी आदेश में उपयुक्त संशोधन किए गए हैं।
वर्तमान में, सीसीआईटी, सूरत ने अस्थायी आधार पर कुछ महीनों के लिए आयकर भवन, सूरत में आयकर अपीलीय अधिकरण के सूरत पीठ की स्थापना के लिए आयकर अपीलीय अधिकरण को जगह प्रदान की है। आयकर अपीलीय अधिकरण के सूरत पीठ का उद्घाटन दिनांक 01.09.2017 को हुआ ।
इस दौरान, आयकर अपीलीय अधिकरण, सूरत पीठ के लिए किराए पर कार्यालय की जगह लेने के लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित कराया गया था, जिसके जवाब में प्राप्त हुए प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है ।
आयकर अपीलीय अधिकरण का अपना भवन
आयकर अपीलीय अधिकरण ने पुणे, बंगलूरू, जयपुर, लखनऊ और गुवाहाटी में कार्यालय-सह-आवासीय क्वार्टरों के निर्माण के लिए भूमि खरीदी है। उड़ीसा सरकार ने आयकर अपीलीय अधिकरण, कटक पीठ को कटक में कार्यालय भवन और कर्मचारियों के क्वार्टरों के निर्माण के लिए 1.601 एकड़ का भू-खंड आबंटित किया है। आयकर अपीलीय अधिकरण ने कोलकाता के न्यू टाउन एरिया में पश्चिम बंगाल हाउसिंग एवं अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (डब्ल्यूबीएचआईडीसीओ) द्वारा विकसित वित्तीय एवं कानूनी केंद्र में आयकर अपीलीय अधिकरण, कोलकाता पीठ, कोलकाता के लिए कार्यालय परिसर हेतु भूमि आबंटित करने के लिए आवेदन किया है। इसके अतिरिक्त, आयकर अपीलीय अधिकरण ई-नीलामी के माध्यम से अपने दिल्ली पीठ के लिए एनबीसीसी, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, नौरोजी नगर, नई दिल्ली में कार्यालय की जगह खरीदने का प्रयास कर रहा है।
भूमि की वर्तमान स्थिति का विवरण: (i)पुणे:- आर्कीटेक्ट के नक्शों और विकल्पों को अंतिम रूप दिया जाना है, जिसके लिए आयकर अपीलीय अधिकरण, पुणे पीठ द्वारा शीघ्र ही आर्कीटेक्ट और केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक बुलाई जा रही है।
(ii) बंगलूरू :- भवन का निर्माण कार्य चल रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान, सर्वे सं० 51, बीटीएम लेआउट, तेवरकर गांव, बंगलूरू में अधिगृहीत भूखंड पर निर्माण कार्य करने के लिए प्रधान लेखा कार्यालय, विधि और न्याय मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा प्रधान लेखा कार्यालय, शहरी विकास मंत्रालय, नई दिल्ली के पक्ष में ‘‘पूंजी परिव्यय’’ शीर्ष के अधीन 8 करोड़ रुपए की धनराशि का प्राधिकार-पत्र जारी कर दिया गया है।
(iii) जयपुर :- भवन का निर्माण-कार्य पूरा हो गया है। कार्यालय भवन और जी-4, राजमहल रेजिडेंसी एरिया, सी-योजना, जयपुर में आयकर अपीलीय अधिकरण के कार्यालय भवन और अधिकारियों के 4 क्वार्टरों के निर्माण के व्यय के केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के लंबित बिलों के भुगतान हेतु वेतन और लेखा अधिकारी, उत्तरी क्षेत्र, केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, पूर्वी ब्लाक, आर.के.पुरम, नई दिल्ली के पक्ष में ‘‘पूंजी परिव्यय’’ शीर्ष के तहत कुल 1.97 करोड़ रु. (सिविल कार्य के लिए 1.15 करोड़ रु.) और बिजली के कार्य के लिए 0.82 करोड़ रुपए) के अंतरण के लिए विशेष मंजूरी प्राप्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं ।
(iv) लखनऊ :- केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, लखनऊ द्वारा 25.39 करोड़ रु० (जिसमें चहारदिवारी के निर्माण के लिए 98,10,898 रु० शामिल हैं) की अनुमानित राशि के आकलन को मंत्रालय को भेजा गया है। बदले में, मंत्रालय ने चहारदिवारी के निर्माण के लिए 98,10898 रुपए के व्यय के लिए सहमति जारी की है। इस संबंध में आगे कार्रवाई चल रही है।
(v) कटक:- आयकर अपीलीय अधिकरण ने अपने कार्यालय भवन और कर्मचारी आवास के निर्माण के लिए उड़ीसा सरकार द्वारा सेक्टर–I, सीडीए, कटक में राजस्व भूखंड सं. 1/09 (पी)/खाता सं.1/1, मौजा सुबर्णपुर, कटक सदर रहसील, कटक में 1.601 एकड़ भूमि प्राप्त की है। उक्त भूखंड में भूमि पूजन/शिलान्यास दिनांक 19.11.2017 को भारत के माननीय मुख्य न्यायमूर्ति, माननीय केन्द्रीय विधि और न्याय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद, माननीय मुख्य न्यायमूर्ति, उड़ीसा उच्च न्यायालय और भारत के उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति श्री ए.के.पटनायक की उपस्थिति में संपन्न हुआ।
मंत्रालय द्वारा दिनांक 11.8.2017 के पत्र के तहत सीडीए, सेक्टर-1, कटक में कार्यालय-सह-आवासीय परिसर के निर्माण कार्य के खर्च हेतु प्रधान लेखा कार्यालय, शहरी विकास मंत्रालय के पक्ष में 11,63,88,000/- रुपए की धनराशि प्राधिकृत की गई है ।
(vi) गुवाहाटी :- वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान ‘‘पूंजी परिव्यय’’ शीर्ष के अधीन फैंसी बाजार, गुवाहाटी में, 4.03 करोड़ रुपए में सेंट्रल इनलैंड वॉटर ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन लिमिटेड (सीआईडब्लूटीसी) की भूमि ली गई थी, जिस पर और असम राज्य क्षेत्र में भूखंड के सुपर-स्ट्रक्चर के मूल्यांकन के संबंध में मामले को विधि और न्याय मंत्रालय को सौंपने की कार्रवाई चल रही है ।
(vii) कोलकाता :- पश्चिम बंगाल हाउसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड (डब्लूबीएचआईडीसीओ) द्वारा विकसित वित्तीय एवं कानूनी केन्द्र में आयकर अपीलीय अधिकरण, कोलकाता पीठ के कार्यालय परिसर के आबंटन के लिए आवेदन के संबंध में 25 लाख रूपए की अग्रिम राशि का भुगतान मंत्रालय द्वारा किया गया है और चूंकि सौदा केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार के बीच है, इस आशय का के.लो.नि.वि. का प्रमाणपत्र मंत्रालय को अग्रेषित किया गया है कि न्यूटाउन एरिया में के.लो.नि.वि. के संरक्षण में कोई केन्द्रीय सरकारी भूमि नहीं है, और भूमि की लागत उचित प्रतीत होती है ।
(viii) पणजी :- आयकर अपीलीय अधिकरण, पणजी पीठ के अपने कार्यालय परिसर निर्माण के लिए पणजी में पाटो परिसर या दूसरे उपयुक्त क्षेत्र में 2000 वर्ग मीटर के उपयुक्त भूखंड के आबंटन के लिए गोवा सरकार के संबंधित अधिकारियों से अनुरोध किया गया था। तथापि, राज्य सरकार से इस संबंध में अभी तक इसकी कोई पुष्टि नहीं की गई है ।
(iX) जोधपुर :- आयकर अपीलीय अधिकरण की जोधपुर पीठ ने जोधपुर विकास प्राधिकरण, राजस्थान सरकार सचिवालय जयपुर के साथ मामला उठाया है और जिलाधिकारी, जोधपुर से आयकर अपीलीय अधिकरण, जोधपुर पीठ के लिए उपयुक्त जमीन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है। प्रधान कार्यालय ने दिनांक 17.04.2017 के यू.ओ. के तहत आयकर अपीलीय अधिकरण, जोधपुर से मामले में आगे कार्रवाई करके रिपोर्ट देने का अनुरोध किया है। मामले में की गई कार्रवाई की प्रतीक्षा है ।
सदस्यों के लिए सुविधाएं :
माननीय उच्चतम न्यायालय ने भारत संघ और अन्य बनाम ऑल गुजरात फेडरेशन ऑफ टैक्स कंसल्टेंट्स के मामले में वर्ष 1998 की विशेष अनुमति याचिका (एल) एमओएस 6905/1998 और टीपी (सी)सं0 659 और 672-673 में दिनांक 19.9.2003 के अपने आदेश में सरकार को यह निदेश दिया था कि आयकर अपीलीय अधिकरण के सदस्यों को विभिन्न सुविधाएं प्रदान की जाएं और आयकर अपीलीय अधिकरण द्वारा सदस्यों को उक्त सुविधाएं मुहैया कराने के लिए हर संभव प्रयास किया गया है ।
हितकारी निधि
आयकर अपीलीय अधिकरण में एक हितकारी निधि बनाई गई है, जिसमें अधिकारियों और कर्मचारिवृंद के स्वैच्छिक अभिदाय से राशि संगृहीत की गई है। अध्यक्ष, आयकर अपीलीय अधिकरण इस निधि के संरक्षक हैं। अधिकारी और कर्मचारिवृंद इस निधि में स्वैच्छिक रूप से अभिदाय करते हैं तथा निधि के नियमों के अधीन बनाई गई समिति की सिफारिश पर ऐसे कर्मचारियों को, जिन्हें चिकित्सा और अन्य आपात स्थितियों में मदद की जरूरत होती है, आर्थिक सहायता दी जाती है।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 आयकर अपीलीय अधिकरण द्वारा इसका कार्यान्वयन किया जा रहा है।
राजभाषा नीति का कार्यान्वयन :
आयकर अपीलीय अधिकरण के सभी न्यायपीठों में राजभाषा कार्यान्वयन समितियां गठित की गई हैं ताकि राजभाषा विभाग, भारत सरकार द्वारा निर्धारित राजभाषा नीति के उचित कार्यान्वयन पर नजर रखी जा सके और मार्गदर्शन दिया जा सके ।
हिन्दी में पत्र व्यवहार के लिए निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति में हुई प्रगति तथा इसके कार्यान्वयन को संबंधित न्यायपीठ द्वारा मॉनीटर किया जाता है और न्यायपीठों की हिन्दी के प्रगामी प्रयोग संबंधी तिमाही रिपोर्टों की मुम्बई स्थित मुख्यालय द्वारा नियमित रूप से जांच की जाती है । राजभाषा विभाग, भारत सरकार की हिन्दी शिक्षण योजना के अधीन पर्याप्त संख्या में कर्मचारियों को नामित करके उन्हें हिन्दी/हिन्दी टंकण/ हिन्दी आशुलिपि में प्रशिक्षण दिलाया जाता है ।
न्यायपीठों में राजभाषा नीति के उचित रूप से कार्यान्वयन के लिए और हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने तथा हिन्दी में काम करने में अधिकारियों/कर्मचारियों की झिझक दूर करने के लिए हिन्दी कार्यशालाएं भी आयोजित की जाती हैं ।
राजभाषा अधिनियम, 1963 के उपबंधों के अनुसार, हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है ।
इस वर्ष सभी न्यायपीठों में हिंदी की पुस्तकें खरीदने के लिए पर्याप्त निधि मुहैया कराई गई है। राजभाषा विभाग, भारत सरकार द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्यों के अनुसार इस वर्ष आयकर अपीलीय अधिकरण के सभी कार्यालयों में राजभाषा नीति के कार्यांवयन के अनुसार कुल पुस्तकालय अनुदान की 50 प्रतिशत राशि हिंदी पुस्तकों की खरीद पर व्यय के लिए आबंटित की गई है ।
सरकारी कामकाज में राजभाषा हिंदी के प्रयोग के संबंध में जागरूकता लाने के लिए तथा इसके उत्तरोत्तर प्रयोग की गति को बढ़ाने के लिए सभी पीठों में हिंदी दिवस तथा हिंदी पखवाड़े का आयोजन किया गया।
आयकर अपीलीय अधिकरण, मुख्यालय, मुंबई के लिए एक वार्षिक जर्नल ‘सृजन’ का प्रकाशन किया गया है। इसमें आयकर अपीलीय अधिकरण के सदस्यों, अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा लिखित लेख, कहानी, कविता और यात्रावृत्त इत्यादि के अतिरिक्त हिंदी पखवाड़ा कार्यक्रम, हिंदी कार्यशाला के चित्र भी प्रकाशित किए जाते हैं।
2.17 भारतीय विधि संस्थान (आईएलआई)
प्रस्तावना : भारतीय विधि संस्थान एक प्रमुख विधि अनुसंधान संस्थान है, जिसकी स्थापना दिनांक 27 दिसंबर, 1956 को हुई थी। संस्थान का मुख्य उद्देश्य विधि में उच्च अध्ययन और अनुसंधान को बढ़ावा देना और न्याय प्रशासन में सुधार करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान देना है ताकि विधि और उसके तंत्र के जरिए लोगों की सामाजिक-आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा किया जा सके। इस संस्थान को वर्ष 2004 में मानित विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। संस्थान ने मार्च, 2017 में राष्ट्रीय आकलन और प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) से 4.00 अंकों के पैमाने पर 3.35 का सीजीपीए हासिल करके ‘ए’ ग्रेड सहित अपनी पहली मान्यता प्राप्त की। यह संस्थान विधि में मास्टर डिग्री और डॉक्टर के पाठ्यक्रमों सहित विधि के विभिन्न क्षेत्रों में, अर्थात वैकल्पिक विवाद समाधान, कारपोरेट विधि और प्रबंधन, साइबर विधि और बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार जैसे विषयों में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहा है।
अकादमिक कार्यक्रम: वर्ष 2004 में मानित विश्वविद्यालय घोषित किए जाने के पश्चात, इस संस्थान ने शोधपरक एलएल.एम कार्यक्रम शुरू किया । इस एलएल.एम. कार्यक्रम में दाखिला पूर्णत: योग्यता के आधार पर होता है, जो प्रत्येक वर्ष आयोजित एक सामान्य प्रवेश परीक्षा और साक्षात्कार के जरिये होता है । वर्तमान में, संस्थान द्वारा निम्नलिखित कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं:
कार्यक्रम | अकादमिक सत्र, 2017-2018 में दाखिल छात्रों की संख्या |
एल.एल.एम.- 1 वर्ष (पूर्णकालिक) | 28 |
स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम (वैकल्पिक विवाद समाधान, कारपोरेट विधि और प्रबंधन, साइबर विधि और बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार विधि) | 303 |
विधि में पीएच.डी. | 07 |
छात्रों की कुल संख्या | 338 |
संस्थान में एक पी.एच.डी. कार्यक्रम है, जिसमें इस समय 21 छात्र नामांकित हैं ।
यह संस्थान बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार और साइबर विधि में तीन माह की अवधि के ऑन-लाइन ई-लर्निंग प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम भी चलाता है ।
- किए गए शोध-प्रकाशन: रिपोर्ट की अवधि के दौरान संस्थान द्वारा निम्नलिखित शोध प्रकाशन जारी किए गए :
- ऑफ द इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट (जेआईएलआई):यह भारतीय विधि संस्थान का त्रैमासिक जर्नल है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय महत्व के सामयिक विषयों पर शोध आलेख प्रकाशित किए जाते हैं ।
- विधि का वार्षिक सर्वेक्षण: भारतीय विधि संस्थान हर वर्ष एक बहुत प्रतिष्ठापूर्ण प्रकाशन: “भारतीय विधि का वार्षिक सर्वेक्षण” करता है जिसमें विधि की प्रत्येक शाखा की नवीनतम प्रवृतियां प्रस्तुत की जाती हैं।
- 0एल0आई0 न्यूजलैटर: यह संस्थान का त्रैमासिक प्रकाशन है और इसमें संस्थान के सदस्यों/विधिक बिरादरी के लाभ के लिए संस्थान की सभी गतिविधियों की जानकारी और उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण फैसलों के नेल स्कैच नियमित रूप से प्रकाशित किए जाते हैं।
- की पत्रिकाओं की अनुक्रमणिका : यह संस्थान का वार्षिक प्रकाशन है, जिसमें आईएलआई पुस्तकालय को प्राप्त हो रही विधि और संबंधित क्षेत्रों की पत्रिकाओं (इयर बुकों और अन्य वार्षिक प्रकाशनों सहित) की अनुक्रमणिकाएं प्रकाशित की जाती हैं।
प्रकाशित पुस्तकें
- लीगल रिसर्च मेथडोलोजी
- पीराइट लॉ इन डिजिटल वर्ल्ड: चैलेन्जेज़ एंड अपोर्च्यूनिटिस
- इनवायरनमेंट लॉ एंड इनफोर्समेंट: द कंटेम्परेरी चैलेन्जेज
- इमर्जिंग कंपटीशन लॉ
संगोष्ठियां/सम्मेलन/प्रशिक्षण/कार्यशालाएं/दौरे/विशेष व्याख्यान:
- जमानत संबंधी मामलों पर न्यायिक परामर्श, दिनांक 21 जनवरी, 2017
भारत के विधि आयोग और भारतीय विधि संस्थान ने संयुक्त रूप से दिनांक 21 जनवरी, 2017 को ‘जमानत संबंधी मामलों पर एक-दिवसीय न्यायिक परामर्श’ का आयोजन किया। भारत के विधि आयोग के अध्यक्ष माननीय न्यायमूर्ति डॉ. बी.एस. चौहान ने अध्यक्षीय भाषण दिया। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर ने उद्घाटन भाषण दिया।
- भारतीय विधि संस्थान ने भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के सहयोग से दिनांक 18-19 मार्च, 2017 को ‘प्रतिस्पर्धा विधि और नीति: समस्याएं और संभावनाएं’ विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। भारतीय विधि आयोग के अध्यक्ष माननीय न्यायमूर्ति डॉ. बी.एस. चौहान ने सम्मेलन का उद्घाटन किया।
- भारतीय विधि संस्थान ने दिनांक 7 और 8 अप्रैल, 2017 को ‘बौद्धिक संपत्ति अधिकार और लोकहित’ विषय पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन का उद्देश्य लोकहित के बरक्स बौद्धिक संपत्ति अधिकारों के उभरते मुद्दों और प्रवृत्तियों पर देश भर के बुद्धिजीवियों के साथ विचारों का आदान-प्रदान करना था।
- विधि और हिंसा पर संगोष्ठी पाठ्यक्रम, दिनांक 8-14 मई, 2017
संस्थान ने दिनांक 8 से 14 मई, 2017 तक ‘विधिक सिद्धांत :- सभ्य समाज में हिंसा के औचित्य/अनौचित्य के प्रसंग’ विषय पर एक सप्ताह के संगोष्ठी पाठ्यक्रम का आयोजन किया। पाठ्यक्रम में विशेष रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय और वार्विक विश्वविद्यालय, ब्रिटेन के विधि के प्रोफेसर (अवकाश प्राप्त) प्रो. उपेन्द्र बख्शी ने प्रतिभागियों के ज्ञान में वृद्धि की।
समीक्षाधीन अवधि में, भारतीय विधि संस्थान ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सहयोग से निम्नलिखित प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया:-
- दिनांक 23 जनवरी, 2017 को ‘बाल सुधारगृह, वृद्धाश्रम, और स्वास्थ्य क्षेत्र’ के लिए एक-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- दिनांक 22 फरवरी, 2017 को मीडिया कर्मियों ओर सरकार के जनसंपर्क अधिकारियों के लिए एक-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- दिनांक 20-21 मार्च, 2017 को जेल अधिकारियों के लिए दो-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- दिनांक 25-26 मार्च, 2017 को न्यायिक अधिकारियों के लिए दो-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम।
म्यांमार के न्यायिक अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम, दिनांक 22 से 29 जुलाई, 2017
भारतीय विधि संस्थान और विदेश मंत्रालय, भारत सरकार ने संयुक्त रूप से दिनांक 22 से 29 जुलाई, 2017 को म्यांमार के 23 न्यायिक अधिकारियों के लिए भारतीय विधि के विभिन्न पहलुओं जैसे कि तुलनात्मक संवैधानिक विधि, बौद्धिक संपत्ति अधिकार, साइबर विधि, शरणार्थी विषयक विधि और अंतरराष्ट्रीय दंड विधि पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया। कार्यक्रम में व्याख्यान देने वाले गणमान्य व्यक्तियों में म्यांमार के राजदूत महामहिम यू मोंग वाई और भारत सरकार के विधि सचिव श्री सुरेश चन्द्र शामिल थे।
आगामी गतिविधियां
(दिनांक 15.12.2017 से 31.03.2018 तक)
प्रकाशन: उपर्युक्त अवधि के दौरान निम्नलिखित अनुसंधान दस्तावेज प्रकाशित किए जाने का प्रस्ताव है:-
- जर्नल ऑफ इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट (त्रैमासिक प्रकाशन)
- आई.एल.आई. न्यूजलैटर विद केस कमेंट्स एंड लीगल जाटिंग्स (त्रैमासिक प्रकाशन)
- भारतीय विधि का वार्षिक सर्वेक्षण – 2017
- विधि पत्रिकाओं की अनुक्रमणिका – 2017
निम्न विषयों पर नई पुस्तकें:
- पर्यावरण प्रदूषण का विधिक नियंत्रण: विद्यमान विधान का मूल्यांकन
- भारत में आतंकवाद, राजद्रोह और मानवाधिकार
- , हिंसा और न्याय
- भारत में बौद्धिक संपत्ति और मानवाधिकार
- कापीराइट विधि: डिजिटल दुनिया में चुनौतियां
- धन शोधन विधि: भारत में मुद्दे और चुनौतियां
- 21वीं सदी के भारत में जल संबंधी विधि की बढ़ती भूमिका: उपलब्धियां और चुनौतियां
संगोष्ठियां/सम्मेलन/प्रशिक्षण कार्यक्रम/कार्यशालाएं:
- संस्थान वित्तीय वर्ष 2017-18 की शेष अवधि में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सहयोग से जेल अधिकारियों/मीडिया कर्मियों और न्यायिक अधिकारियों के लिए एक दो-दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेगा।
- कुछ और विशेष व्याख्यानों/भारतीय विधि संस्थान के संकाय सदस्यों/छात्रों के साथ विचार-विमर्श के आयोजन भी प्रस्तावित हैं।
2.18 भारतीय बार काउंसिल (बी.सी.आई.)
अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अधीन गठित भारतीय बार काउंसिल को अन्य बातों के साथ-साथ अधिवक्ताओं के लिए व्यावसायिक आचरण व शिष्टाचार के मानदंड निर्धारित करने तथा देश में विधि शिक्षा के मानदंड निर्धारित करने, उन्हें बनाए रखने तथा उनमें सुधार करने की शक्ति प्रदान की गई है । जबकि राज्य बार काउंसिलें अधिवक्ताओं के तौर पर नामांकन करने के लिए प्राधिकरण हैं, राज्य बार काउंसिलें और भारतीय बार काउंसिल मिलकर अधिवक्ताओं में अनुशासन का प्रवर्तन करती हैं । अनुशासनात्मक मामलों में भारतीय बार काउंसिल अपीलीय प्राधिकरण के तौर पर कार्य करती है ।
2. भारतीय बार काउंसिल सदस्यों को परिचालित कार्यसूची के अनुसार नियमित अंतरालों पर बैठकें करती है । इन बैठकों में, काउंसिल धारा 26(1) के अधीन उन मामलों में निष्कासन की कार्यवाहियां भी करती है, जिनमें अन्यथा कथन अथवा महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर किसी व्यक्ति का नामांकन किया गया हो; और राज्य बार काउंसिलों से धारा 26(1) के अधीन प्राप्त ऐसे निर्देशों का निपटान भी करती है, जिनमें राज्य बार काउंसिल द्वारा किसी कारणवश नामांकन के आवेदन को रद्द करने का प्रस्ताव किया गया होता है तथा अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 48(क) के अधीन उन मामलों में पुनरीक्षण याचिकाओं की सुनवाई और निर्णय भी करती है, जिन मामलों में अधिवक्ताओं के विरुद्ध व्यावसायिक अथवा अन्य कदाचार की शिकायतों को राज्य बार काउंसिल द्वारा सरसरी तौर पर खारिज कर दिया गया होता है।